जीजिविषा रोज रचती है

आड़ी तिरछी लकीरों से

काले नीले लाल पीले

सतरंगी सुनहरे पल…

रास्तों की कालिख

धोने को हाथ हैं

मशीन भी

 सुनहरे पल दीवारों

पर टंगे मुस्कुराते हैं

बचे रंग मिलकर

सतरंगी पल बनाते हैं

 सतत रचते हैं दिशा नवीन

जीजिविषा रोज यूँ

हर रंग में मुस्कुराती है

झरोखे में बैठ रानी

गीत नया गाती है

“प्रीति राघव चौहान “

 

VIAPriti Raghav Chauhan
SOURCEप्रीति राघव चौहान
SHARE
Previous articleमत रोको अब बह जाने दो
Next articleगूंगी सड़क
नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

LEAVE A REPLY