क्रोध किसी क्रिया की प्रतिक्रिया मात्र होता है। सामने खड़ी विपरीत परिस्थितियों की दीवार पर अपने क्रोध की जोर आजमाइश करने से बेहतर है तुरंत प्रभाव से वो जगह छोड़ दें…माना जीवन की जीवंत परिस्थितियों में कोई ब्लॉक या म्यूट का बटन नहीं होता लेकिन उसे इसी तरह समझें जैसे उस परिस्थिति को म्यूट कर दिया, ब्लॉक कर दिया हो और उस जगह को छोड़ दें।
गुस्से में गुस्सा दिलाने वाले का सामना कभी नहीं करना चाहिए।
जरूरी नहीं प्रत्येक अनर्गल बात को अपने विवेक पर हावी होने दिया जाए। कभी गौर से देखेंगे तो पाएंगे कि पिछली बार जब हमें गुस्सा आया था तो उसकी वजह बहुत मामूली थी और बात का बतंगड़ बन गया कैसा होता यदि उस वक्त हमने वह जगह छोड़कर एक दो गिलास पानी पिया होता।
उस जगह को छोड़ अपनी रुचि का कोई कार्य किया होता।
यदि क्रोध आपपर हावी है तो बेहतर है उससे कुछ नया करें।आस पड़ोस में सफाई अभियान चला दें।
एक फावड़ा या खुरपी लेकर आसपास से खरपतवार साफ करें।
लेखक हैं तो लिखें।
गायक हैं तो गाएं या संगीत सुने।
एक घंटे बाद क्रोध पहले से कम महसूस होगा। चार घंटे बाद उससे कम और अगले रोज़ शायद न रहे। यदि आप निरन्तर लंबे समय तक क्रोध की अवस्था में रहते हैं तो फिर आपको काउंसिलर के पास जाना ही चाहिये।