गीत 

चल बनकर बंजारा पगले

करता जा ता रा रा रा

बनकर मेघ मल्हार बरस जा

गर जीवन है अंगारा

चल बनकर बंजारा

पगले करता
जा ता रा रा रा

 

राह पकड़ ली मंजिल की

तो रस्तों से घबराना क्या

रोज मिलेंगे नव मुकाम फिर

एक जगह रुक जाना क्या

दुनिया दारी मेले रेले

बनकर घूमा हरकारा

चल बनकर बंजारा पगले

करता जा ता रा रा रा

 

चल बन बंजारा

करे जा ता रा रा रा

 

नित नूतन रच ताल नई

तेरे गीत तेरा श्रृंगार बने

तुझसे बढ़ हो तेरी हस्ती

तेरे कर्म तेरा आगार बनें

देता जा तू दिशा नई

जीवन में बन ध्रुव तारा

चल बनकर बंजारा पगले

करता जा ता रा रा रा

 

चल बन बंजारा

करे जा ता रा रा रा

 

धौले पन्नों पर होंगी

सोने सी तेरी तहरीरें

बदल के रख देंगी जो

सारी दुनिया भर की तदबीरें

जो न समझें समझाना क्या

हो या ना हो जयकारा

चल बनकर बंजारा पगले

करता जा ता रा रा रा

 

चल बन बंजारा

करे जा ता रा रा रा

“प्रीति राघव चौहान”

 

 

 

 

SHARE
Previous articleराम
Next articleउत्कर्ष
नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

LEAVE A REPLY