बूहे खोल ना माड़ी 
धूल राहों की काबिज है 
जहाँ की धूलि में खेला 
उसी में मिलने आया हूँ 

परिंदा था मैं आवारा
परवाज़े न रुकती थीं 
है नीला आसमाँ काला 
शिवाले लौट आया हूँ 

है अफसुर्दा सा चेहरा 
न अब हैं रौनकें बाकी 
कभी काजल लगाया था 
आंसू लेकर आया हूँ 

कमज़र्फ आंधी ले उड़ी 
ऊंचे सभी मरकज़ 
मुफ़ीद था तेरा ही दर 
दुआएं लेने आया हूँ 

हैं सारे बंद दरवाज़े 
सांकल में सभी बेकल 
तारीख़े ये भी बदलेंगी
यही बस सुनने आया हूँ 
VIAAnantyatra
SOURCEPriti Raghav Chauhan
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नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

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