बीज से अंकुर, अंकुर से पौध और पौधे से वृक्ष… कभी सोचा है? सब कैसे होता चला जाता है? जैसा पर्यावरण, जैसी परिस्थितियां वैसा ही प्रस्फुटन वैसा ही बढ़ना। यह बात हम पेड़ पौधों के लिए तो कह सकते हैं किंतु मनुष्य के लिए यह बात उचित नहीं लगती। केवल मानव ही है जो अपने दम पर पहाड़ को कदमों में ला सकता है। केवल मनुष्य ही है जो चांद पर जा सकता है। फिर चाहे वह कैसी भी परिस्थितियों में क्यों ना हो। परिस्थितियां कभी भी मनुष्य की दिशा को नहीं बदल सकती। मानव ही है जो विपरीत धारा से भी मोती चुरा के ला सकता है। पर्यावरण व परिवेश केवल मानव की प्रगति में कुछ समय के लिए के अनुकूल हो सकते हैं लेकिन उसकी अपनी जिजीविषा ही वो शय है जो उसे संपूर्णता की ओर ले जा सकती है।
सही समय.. प्राय हम सभी सही समय का इंतजार करते हैं। देखते हैं कि जब सही समय आएगा तब करेंगे। अभी वक्त हमारे अनुकूल नहीं है। आज रविवार है , आज भाई को बुखार है, अभी तो शादी हुई है, आज थोड़ा सर दर्द है….. क्या बुखार, त्यौहार, सर दर्द… यह हमारे जीवन की दिशा को तय करेंगे? हमारे जीवन की दिशा को केवल हम बना सकते हैं सिर्फ हम.. और सही समय अब है । अभी नहीं तो कभी नहीं!!
प्रतिकूल परिस्थितियां….. कभी गौर से देखेंगे तो पाएंगे – आज का दिन भी कुछ खास नहीं था ….. आज भी कुछ खास नहीं कर पाया…. और इसी तरह हर दिन निकल जाता है। याद कीजिए पिछले पूरे हफ्ते में कोई ऐसा दिन था जो खास हो? पूरे महीने में कोई ऐसा दिन था जो विशेष हो ? पूरे साल भर में कोई ऐसा लम्हा था जो आपने जी भर कर दिया हो? नहीं ना!! यह सब हमारे उस चश्मे की वजह से है जो हमने लगा रखा है । इसमें सब हमें प्रतिकूल नजर आता है और इसे हम कभी अपने अनुकूल बनाने की कोशिश ही नहीं करते। प्रतिकूलता जब हम पर हावी हो जाती है तो भूल जाते हैं हम दिशाबोध। मत होने दें हावी प्रतिकूलता को स्वयं पर।
वरण करें इस पल को.. जो आपके समक्ष है, विशेष है! अच्छा है या बुरा। सुखद पलों में दिशा तय करने में कोई दिक्कत नहीं होती। हां बुरे वक्त में दिशा बोध धुंधलाने लगता है। आप किसी कार्य को करना चाहते हैं और उस कार्य का हुनर आपके पास नहीं है तो इसके लिए आप क्या कर सकते हैं? पहले आपको अपने अंदर वह हुनर लाना पड़ेगा तभी आप उस कार्य को कर सकेंगे , दूसरा रास्ता है कि आप वह कार्य करें ही ना। करें वह जो हुनर आपके अंदर है या जिसके लिए आप बने हैं। एक चिकित्सक एक अच्छा लेखक या वक्ता भी हो सकता है। लेकिन एक अच्छा लेखक एक चिकित्सक नहीं बन सकता!! इसीलिए अपनी संभावनाओं को पहचाने और उसके अनुकूल कार्य करें। कई बार ऐसा भी देखा गया है कुछ लोग ऑल राउंडर होते हैं। उन्हें जिस दिशा में जिस कार्य में लगा दो उस कार्य को पूरा करके छोड़ते हैं। यह बात अलग है कि ऐसे लोग विरले ही होते हैं। उनके लिए हर दिशा उनकी अपनी होती है।
निर्मल जल बनें …जल ही जीवन है। यदि स्वयं को जल के स्थान पर रख कर देखेंगे तो आप समझ लेंगे कि आप को क्या होना है सदैव नीचे से ऊपर की ओर और ऊपर से नीचे लेकिन सदैव प्रवाह मान रहना है। स्वच्छ और शीतल रहना है । चाहे परिस्थितियां कैसी भी हों निरंतर आगे बढ़ते रहना है। हमारी जरूरत किसे है? कितनी है? कब तक है? क्यों है? ये सब हमें नहीं सोचना। केवल अपने कार्य को इमानदारी और निष्ठा के साथ करना है।
पहचानो स्वयं को.. दिशा वरण से पहले जरूरी है स्वयं से पहचान। अपने आप को जानो। अपने हौसलों को जानो और समझ जाओगे कि आप की दिशा कौन सी है? शैतान से साधु हुआ जा सकता है, पंगु पर्वत को लांघ सकता है। इंसान चाहे तो अंबर फाड़ कर पैबंद लगा सकता है। कुछ भी असंभव नहीं है। रही बात दिशा की तो आप की दिशा आप ही तय करेंगे कोई और तो आप की दिशा को तय कर ही नहीं सकता। आप स्वयं अपनी उड़ान के मालिक हैं। याद रखें बुरे से अच्छे होने के लिए प्रयत्न करना पड़ता है। अच्छे से बुरे होने के लिए तो किसी प्रयत्न की जरूरत ही नहीं। इसीलिए लगातार स्वयं, परिवार के, समाज के, देश हित हेतु कार्य करें।
नया लेख
नई दिशा कैसे करें तय???
लेख : प्रीति राघव चौहान 7 सितंबर 2020 by Priti Raghav Chauhan
pritiraghavchauhan.com |