मैं उसकी आँख का पानी हूँ 

बोलो कैसे मर सकता हूँ 

उसकी पुरजोर जवानी हूँ 

बोलो कैसे मर सकता हूँ

है चॉक कलेजा सुनकर ही

उसकी आँखों देखी गाथा

रक्त से लथपथ वाणी हूँ 

बोलो कैसे मर सकता हूँ 

 

ये हाहाकार मचा कैसा 

ये शोर कहाँ से उठता है 

है गंध हवा में बारूदी यह 

सोच सिहर दिल उठता है 

भारी हैं पांँव मिलती न ठाँव 

कैसे पहुंँचूं अब उसके गांँव 

संगीनो के गहरे साये 

हर ओर धुंआ सा उठता है 

 

इक चारदीवारी के भीतर 

रब के बन्दे रबी काट जुटे 

रॉलेट पर रोक लगा दो जी

बैसाखी पर भर बाट जुटे। 

आजाद गुलिस्तां पाने को

थे वैरागी दिलदार जुटे 

बच्चे, बीबी, सधवा, विधवा

हर ओर से आ जांबाज़ जुटे 

 

डॉयर भी लेकर आ पहुंचा 

बंदूकधारिणी गश्ती को

बैठिए शांत हम हैं संभ्रांत 

ये बात सुनाई बस्ती को

पलक झपकते ही मारे

गिन-गिन सब रब के प्यारे 

न दिया तनिक भी मौका उसने 

जीवन का इक भी हस्ती को 

 

है कैसी अजब ये बैसाखी 

तन हैं न जान रही बाकी

है जीवित कौन यहाँ है मृत 

छू छू कर देखूँ सिर माथी

है समक्ष ये विशाल अक्ष

रक्तिम धरा का सना ये वक्ष

किस किस को कांधे ले जांऊँ

हे रब अब तू ही बन साथी 

 

लाल मेरा था साथ मेरे 

मैं साथ उसी के जाऊँगा 

बिन अपनी प्राणप्रिया के भला

 बोलो कैसे जी पाऊँगा 

मेरा नाती मेरी पोती

मेरा वीरा मेरी दोहती

सुनकर मन में संग्राम उठा

मैं कैसे उन्हें उठाऊंगा 

 

यह अंतर्द्वंद्व घना लेकर 

मैं भूल गया सुध बुध अपनी 

जीते जी न कोई जां जाए

बस ये ही सोच बना घिरणी

थी विशाल रात कांधे थी पांत

थे अंग भंग बस मैं विश्रांत 

अब चाहे जान रहे न रहे 

बस पार करो मेरी तरिणी 

 

था मेरा मासूम गुलिस्तां भी 

जो उसी रेत में खेत हुआ 

उसके संग जाने कितनों का

रंग वहाँ श्याम से श्वेत हुआ

भारी है पीर बना क्रांतिवीर

मुर्दा है जिस्म जिंदा शरीर 

भूलूं कैसे वो बोझिल पल 

था जब क्रंदन समवेत हुआ 

जब तक है डायर धरती पर

मेरा जीवन यह फानी है 

जब तक वो कूकुर जीवित है 

मेरी नाकाम जवानी है 

लेता हूँ प्रण जीवन है रण

न लूंगा चैन कुचलूंगा फण

वो नाग ढूंढ कर मारूँगा 

बस खत्म तभी कहानी है 

 

बहुत दिया उसको मौका

वो कह दे गलत किया मैंने 

था कृत्य नीच जघन्य मेरा

भारी अविवेक किया मैंने 

संताप न पश्चाताप कोई 

न उसको था उत्ताप कोई

वो महापातकी हँसता था

भारत को खौफ दिया मैंने 

 

कल के अखबारों में होंगा 

हिन्दू ने कत्लेआम किया 

सिरफिरे से इक नौसिखिए ने 

डायर का काम तमाम  किया 

किया शिरोच्छेद न रखा भेद

गोरों के घर में ही दिया बेध

अब अगली नस्लें याद रखें

उधम ने नेक था काम किया  

 

मैं उसकी आँख का पानी हूँ 

बोलो कैसे मर सकता हूँ 

उसकी पुरजोर जवानी हूँ

 बोलो कैसे मर सकता हूँ

 

 “प्रीति राघव चौहान” 

उपरोक्त कविता मेरी स्वरचित व मौलिक है। 

 

“प्रीति राघव चौहान” 

 

 

VIAPRITI RAGHAV CHAUHAN
SOURCEप्रीति राघव चौहान
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नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

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