.. रास्ते में जंगल
जंगल के बीच रास्ता
सचमुच अद्भुत था
डिज्नीलैंड से भी
मोहक थे नजारे
सूखी हुई धरती की
वो छटा अब तलक आँखों में है
जैसे कह रहा हो कोई
रुक जा अब आगे न जा
जगन्नाथ पुरी के तट जैसा कुछ
केदारनाथ के खालीपन जैसा कुछ
लोगों के लिए होगा ये जंगल ए सफारी
मैंने यहाँ आकर उसकी सत्ता को
महसूस किया
धरणी से उठती रोशनी को प्रतिपल
आकंठ पिया
“प्रीति राघव चौहान”