पुकारता है व्यास का

 वो किनारा बार बार

आँखों में तैरते हैं

वो उनींदे देवदार

खर्शू पर काई सा

छोड़ कर आया हूँ मन

मैपल के पत्रों सा

झर रहा है मुझमें वन

मनाली की झरणियाँ

फूटें हैं पोर-पोर में

बारन सा पैरहन

तैरे है मंद शोर में

विलो शैगल वो राई

पर चढ़ीं लता

वो संकरे तंग रास्ते

भूले जहाँ घर का पता

वो जामुनी और पीले फूलों

से पटा पहाड़

मनु ने यहीं तो आकर

पाया था त्राण

हिडिम्ब के प्रकोप से

बचाए जन थे भीम ने

हिडिम्बा संग यहीं फेरे

लिये थे भीम ने

टिंबर शाचकी सी

घूमूं मैं यहाँ वहाँ

ढूंढती हूँ शोर में

हरितिमा भरा जहाँ

कुजा बना कुरा बना

बेखल या शाड़ा बना

ऐ देव भेज फिर वहीं

चाहे दे जाड़ा बना

“प्रीति राघव चौहान”

उपरोक्त कविता कॉपी राइट अधिकार प्रीति राघव चौहान का है। 

VIAPriti Raghav Chauhan
SOURCEप्रीति राघव चौहान
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नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

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