पानी.. पानी
पानी
हुई पुरानी ताल-तलैया,
हुए पुराने कुएं जी।
नल ही नल हैं अब तो घर-घर
कहाँ रहे वो झरने जी।
पानी ले जाती पनिहारिन
हवा न जाने कहाँ हुई
बोतल में अब बँधे हुए
मिलते पानी के कतरे जी
लहरों संग हम बहते थे
था जल कुंओ में माथे तक
अवनी सूखी अंबर सूखा
सूखे पीपल पत्रे जी
नदियाँ सिकुड़ी धीरे-धीरे,
नीर बचा न तीरे जी
सूरज जमकर आग उगलता
काम न आए खीरे जी
आओ मिलकर वारि बचाएं,
धरती को फिर से हरियाएं।
हर घर दो- दो वृक्ष लगाएँ,
पृथ्वी को खुशहाल बनाएं।
पानी को मत व्यर्थ बहाओ,
हर बूँद का समझो मोल
नदी, तलैया, ताल बचाओ
पानी बच्चों है अनमोल
‘प्रीति राघव चौहान ‘
बाल कविता बाल कविता