- मैंने जब भी तलाशे
इक कंकर डाल
रुके हुए पानी में
अपनी उलझनों के हल
मुझेअपनी उलझने वर्तुलाकार लगीं
जितना तलाशा उतना बढ़ाया
सिलसिला यूँ कभी थमने ना पाया
आज थक कर चुपचाप जो बैठा
मेरे समक्ष ” मैं”था बिल्कुल मुझ जैसा
1.सहानुभूति की चाह__ दोस्तों कितनी बार ऐसा होता है कि हम परेशान होते हैं ।यहाँ वहाँ भटकते हैं कि कोई हमसे सहानुभूति जताये ।हमसे हमारी परेशानी सुने ।परन्तु आपने सोचा है कभी कि वर्तमान समय में आपके मनो मस्तिष्क में चल रही उधेड़बुन आपकी परेशानी को और बढ़ा रही है ।
2.हमारे कष्टदायी विचार___ हमारे बहुतेरे कष्टों का कारण तो स्वयं हमारे ही बनाये हुये होते हैं।हम दुर्घटनावश आई परिस्थितियों की बात नहीं कर रहे ।हम अपने मानसिक विचारों से बुने हुये जाल की बात कर रहे हैं ।आप पहले तो ये मान लें कि मुसीबत में आप इसलियें हैं कि आप मानते हैं कि आप ही सर्वश्रेष्ठ हैं ।
3.मैं ठीक ___ इंसान कभी भी अपने आप को किसी दूसरे से हीन नहीं समझता ।उसे लगता है कि जो वह कह रहा है बस वही उचित है ।जो वह कर रहा है वही सही है । बाकी सब गलत ! यही उसके कष्टों का कारण बनता है ।क्योंकि आप जो चाहे जरूरी नहीं कि ऐसा ही हो । 4.इच्छापूर्ति में बाधा ___ आप की इच्छा के खिलाफ कुछ घटित होता है तो आप परेशान होते हैं ।आप क्यों नहीं इसे (अपनी इच्छा को) परे रखकर सोचते? क्या करना चाहता हूँ? क्यों करना चाहता हूं?? हमारी इच्छा पूर्ति में आ रही बाधा ही हमारे संकटों का कारण है ।
5.मंदिर या गिरिजा____ या तो यह इच्छा पूर्ण हो तो संकट समाप्त । इच्छा पूर्ण ना भी हो और संकट कट जाए.. उसके लिए हमें किसी मंदिर किसी गिरजाघर की जरूरत नहीं है ।जब हम यह जान लेते हैं हमारी तमाम मानसिक परेशानियों का कारण हमारे स्वयं के विचार हैं, हम संकट शूून्य हो जाते हैं ।
6.अन्तरपट खोलो ___ चेहरे को नहीं अपने अन्तर मन को देखें ।जिस रोज हम आईने में अपने चेहरे को ना देख अपने मन के चेहरे को देखेंगे हमारे बहुत से संकट बहुत सी परेशानियां स्वत: समाप्त हो जाएगी । आईने में झांकने के लिए धैर्य और ध्यान की आवश्यकता है ।कुछ पल सिर्फ अपने साथ बिताएँ और देखें आपने हर परेशानी का हल खोज लिया ।
7.आप भगवान नहीं ____ आप जो सोचे, जैसा सोचे वैसा ही हो जरूरी नहीं ।आपके सामने वाले की सोच आपकी सोच से विभिन्न हो सकती है ।हो सकता है आप जो चाहते हैं उसमें सामने वाले का नुकसान हो। आपकी फायदे की चाह सामने वाले के लिए भी तो परेशानी का कारण हो सकता है ।
8.उदाहरण_____ मान लीजिए आप दुकान पर हैं ।आपके घर से बार-बार फोन आ रहे हैं। घर पर मेहमान बैठे हैं ।आपको जल्दी घर जाना है। सामने ग्राहक खड़ा है और आराम से अपने लिए चीजें ढूंढ रहा है.. ऐसे में यदि आप झल्लाते हैं उसे जल्दी अपना काम करने की कहते हैं तो संभव है वह अगली दफा आप की दुकान से किनारा कर निकल जाए । चलिए एक दूसरा उदाहरण लेते हैं आप किसी संस्था में काम करते हैं ।आप चाहते हैं कि आप की उपस्थिति भी दर्ज हो जाए और आप को काम भी ना करना पड़े और सभी आपसे खुश रहें! क्या ऐसा संभव है? कोई भी संस्था आपकी खुशी के लिए आपको मेहनताना क्यों देगी??? और आप अपने मुखिया से परेशान रहते रहते हैं । एक तीसरा उदाहरण आप घर पर हैं। आप कुछ करना नहीं चाहते।आप चाहते हैं सभी कुछ आपके लिए आपकी सेवा में उपस्थित हो।ऐसा संभव है बशर्ते कि आपने बहुत से नौकर-चाकर लगा रखे हैं यदि ऐसा नहीं है फिर भी आप यह सोचते हैं आप जैसा चाहेंगे वैसा होगा तो आप गलत सोचते हैं ।
9.सतत कर्म __ आपको अपना मैं एक तरफ रखना होगा ।अपनी इच्छा को खूंटी पर टांग कर्मशील रहना होगा । कर्मशील रहने का अर्थ यह नहीं है कि नकारात्मक कार्य में व्यस्त रहे ।कर्मशीलता से अभिप्राय है आप जहां पर कार्य कर रहे हैं, उसे सर्वश्रेष्ठ तरीके से करें ।
10.अहं की जड़ में सिरका _____ हमारा अहंकार हमें झुकने नहीं देता और जब तक हमें झुकना नहीं आएगा उठ नहीं पाएंगे ।हमारे कष्टों की जड़ में हमारे अहंकार का पानी है । अहंकार की जड़ों में प्रतिदिन सिरका डालें । परेशानियाँ उड़न छू हो जायेंगी ।