धरती 

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धरती धरती

धरती

कल मैं जमीन पर बैठी थी

माँ बोली! धरती पर क्यों बैठी हो?

अभी वसुधा पर ओस है।pritiraghavchauhan.com

मही अभी नम है।

उर्वी से उठो, क्षिति!

धरित्री को सूखने दो…

तुम्हें पता है.. मेदिनी रातभर जाड़े में थी।

अब रत्न गर्भा हीरे उगल रही है…

 

कहाँ हैं हीरे? मैंने आश्चर्य से कहा!

वसुंधरा को गौर से देखो

इस अचला के हरे आँचल को देखो तो जरा..

धरा के तन पर ये जो घास का दुपट्टा है

उस पर हीरे सी चमकीली बूँद रत्न नहीं हैं क्या?

 

माँ मुझे न बनाओ

मुझे पता है पृथ्वी के बहुत नीचे

खोदने पर ही मिलते हैं रत्न

धरा को ठंड से पसीना आ गया शायद

तभी भूमि गीली है

माँ धरिणी सी मुस्कुरा उठी…!

 

 

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नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

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