धरती धरती
कल मैं जमीन पर बैठी थी
माँ बोली! धरती पर क्यों बैठी हो?
अभी वसुधा पर ओस है।pritiraghavchauhan.com
मही अभी नम है।
उर्वी से उठो, क्षिति!
धरित्री को सूखने दो…
तुम्हें पता है.. मेदिनी रातभर जाड़े में थी।
अब रत्न गर्भा हीरे उगल रही है…
कहाँ हैं हीरे? मैंने आश्चर्य से कहा!
वसुंधरा को गौर से देखो
इस अचला के हरे आँचल को देखो तो जरा..
धरा के तन पर ये जो घास का दुपट्टा है
उस पर हीरे सी चमकीली बूँद रत्न नहीं हैं क्या?
माँ मुझे न बनाओ
मुझे पता है पृथ्वी के बहुत नीचे
खोदने पर ही मिलते हैं रत्न
धरा को ठंड से पसीना आ गया शायद
तभी भूमि गीली है
माँ धरिणी सी मुस्कुरा उठी…!