माना कि साल अभी नया नया सा है

चहूँ ओर कोहरे का छाया धुँआ सा है

मेरा दर मेरी खिड़की बंद है बेज़ा नहीं

गाँव का बाशिंदा

बाहर सर्द समन्दर का गहरा कुँआ सा है

भेज दी दरख्वास्त *आफताब को हमने

पिघलना अभी कुछ शुरु वो हुआ सा है

बड़े शहर बड़ी सौढ़ जश्न उससे भी बड़े

गाँव का बाशिंदा अब भी अनछुआ सा है

ज़िन्दगी क्या है झगड़ा दीवानी सा है

तारीख़ पर तारीख़ लगता सुना हुआ सा है

ये बात और है कि पत्थर हो गया हूँ मैं

देखकर सुर्खियाँ खड़ा रुँआ रुँआ सा है

उम्मीद की पतंग को देकर देखी ढील भी 

मांझा मगर इससे लागे अलग हुआ सा है 

फिर आज होगी कंदीलों से बोझल साँझ 

फिर तेरी *जानिब दुआओं का *शुआ सा है “

प्रीति राघव चौहान” 

VIAPRITI RAGHAV CHAUHAN
SOURCEप्रीति राघव चौहान
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नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

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