आग

आग जो अकेले जली

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वो आग जो तसले में पली 

आग जिसने जोड़ा सभी को

वो आग जिसने तोड़ा सभी को

वो आग जो शाम को लगी भली

वो आग जो अकेले जली..

उस अग्नि का किस्सा कहानी सा है

उस अग्नि का परिचय जवानी सा है

उस अग्नि से निकले सुनहरी ख्वाब

उस अग्नि से निकले गजब सुरखाब

उस अग्नि का मिलना रुहानी सा है

वो आग जो अकेले जली..

वो पावक थी पाहुन संग

वो पावक थी बहुत निहंग

वो पावक पावस से थी दूर

वो पावक पावन थी बहुत

वो पावक थी सचमुच नि:शंक

वो आग जो अकेले जली…

उस अनल में इक शोर था

उस अनल में इक जोर था

उस अनल में चटकी अहम की छड़ी

उस अनल में भटकी वहम की घड़ी

उस अनल में इक कोर था

वो आग जो अकेले जली..

वो थी अंतर जठराग्नि सी

वो थी पंच भूताग्नि सी

वो दावानल नहीं थी

वो बड़वानल नहीं थी

वो थी सप्त धातुग्नि सी

वो आग जो अकेले जली… ‘प्रीति राघव चौहान ‘

VIAप्रीति राघव चौहान
SOURCEPriti Raghav Chauhan
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नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

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