वो आग जो शाम को लगी भली
वो आग जो अकेले जली..
उस अग्नि का किस्सा कहानी सा है
उस अग्नि का परिचय जवानी सा है
उस अग्नि से निकले सुनहरी ख्वाब
उस अग्नि से निकले गजब सुरखाब
उस अग्नि का मिलना रुहानी सा है
वो आग जो अकेले जली..
वो पावक थी पाहुन संग
वो पावक थी बहुत निहंग
वो पावक पावस से थी दूर
वो पावक पावन थी बहुत
वो पावक थी सचमुच नि:शंक
वो आग जो अकेले जली…
उस अनल में इक शोर था
उस अनल में इक जोर था
उस अनल में चटकी अहम की छड़ी
उस अनल में भटकी वहम की घड़ी
उस अनल में इक कोर था
वो आग जो अकेले जली..
वो थी अंतर जठराग्नि सी
वो थी पंच भूताग्नि सी
वो दावानल नहीं थी
वो बड़वानल नहीं थी
वो थी सप्त धातुग्नि सी
वो आग जो अकेले जली… ‘प्रीति राघव चौहान ‘