Yoga

योग एक दिवस नहीं

सतत् की जाने वाली क्रिया है,

जिसमें स्वयं को लगातार

रखना होता है एकाग्र और स्थिर।

श्वास की गति में लानी होती है समता

चिंतन को निर्मल बनाना होता है।

हर आसन में आत्मा की पुकार सुननी होती है,

हर क्षण में जागरूकता को साधना होता है।

यह शरीर का नहीं,

मन, बुद्धि और आत्मा का अनुशासन है।

योग तप है, योग प्रेम है,

योग जीवन को पूर्णता से जीने का नाम है।

योग एक क्षण में नहीं घटता —

यह तो समय की धड़कनों के बीच

धीरे-धीरे आकार लेता एक मौन संकल्प है।

यह मृदंग से निकली 

किसी एक दिवस की जयध्वनि नहीं 

बल्कि वह अनसुनी प्रतिध्वनि है

जो आत्मा की दीवारों से टकराकर

हर दिन तुम्हें भीतर बुलाती है।

योग — वो सीढ़ी है,

जहाँ ऊपर चढ़ने से पहले

अपने भीतर उतरना पड़ता है।

तू जब मौन में प्रवेश करता है,

तब ही योग की पहली किरण जन्म लेती है।

शेष सब — अभ्यास की रेत पर

सहज बहती समर्पण की नदी है।

तो याद रख —

योग तिथि नहीं,दिशा है।

योग आयोजन नहीं,

अवस्थिति है।

योग प्रदर्शन नहीं,दर्शन है —

अपने भीतर का….. ॐऽऽऽऽ

‘प्रीति राघव चौहान ‘

 

VIAPritiRaghavChauhan
SOURCEPriti Raghav Chauhan
SHARE
Previous articleटिटहरी की चीख
Next articleTheTeacher
नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

LEAVE A REPLY