सुबह-सुबह सुबह एक अच्छे मूड में उठने के बाद सोचा कुछ लिखा जाये ।मन में आज अनेक विचारों के बादल उमड़-घुमड़ कर रहे थे ।पहले मैंने एक लेख लिखना शुरू किया। अभी लेख का पहले गद्यांश ख़त्म किया था अचानक एक कॉल आई… ट्रिन.ट्रिन….. मैंने गफलत में फोन उठाया ।

उधर से आवाज आई –“हैलो, हेलो क्या आप सुहासिनी भोंसले बोल रही हैं? “

मैंने कहा –“हां मैं सुहासिनी हूं ।“

उधर से फिर प्रश्न हुआ, “मैम मैं एक वाई जेड कंपनी से बोल रही हूँ । क्या आप क्या आपने किसी वेबसाइट का डोमेन बुक कराया है?

मैंने कहा, “हां करवाया है ।“

“कहिए मैम, क्या हम आपके लिए वेबसाइट डिजाइन कर सकते हैं?” वो बोली, हम बताएंगे, “आपको क्या क्या कैसे करना चाहिए।”

 अब तक मेरी एकाग्रता पूरी तरह भंग हो चुकी थी । मैंने कहा –“आप फिलहाल फोन रखिए मैं अभी व्यस्त हूं ।” कहकर मैंने फोन काट दिया ।

जैसे-तैसे मैंने अपने विचारों को फिर इकट्ठा किया और लिखने बैठी कि तभी दोबारा एक कॉल आई,“हैलो क्या आप सुहासिनी भोसले बोल रही हैं?”

मैंने अपने आप को संभालते हुए कहा- “हां जी बोल रही हूँ ।“

“मैम आपने डोमेन बुक कराया था, क्या आप एक वेबसाइट बनवाना चाहेंगे ।“

मैंने कहा, “ नहीं । जब डोमेन मैंने बुक किया है तो वेबसाइट भी मैं खुद ही बना लूंगी ।”

उधर से आवाज आई, “मैम, हम प्रोफेशनल आईटी कंपनी से बोल रहे हैं । हम आपके लिए डिजाइन बना देंगे ।”

 मैंने प्रत्युत्तर दिया, “देखिए फिलवक्त मुझे कोई वेब डिजाइन नहीं चाहिए और मैंने फोन काट दिया ।”

तीसरी बार फिर कॉल आया ट्रिन.. ट्रिन ।उठाने पर हैलो… और फिर एक नई लड़की की आवाज अबकी बार मैंने सीधा कहा “देखिये मुझे कोई वेब डिजाइनिंग नहीं करवानी है…… मुझे कोई वेबसाइट नहीं बनवानी। मुझे जो करना होगा मैं स्वयं कर लूंगी।” यह कहकर मैंने फोन काट दिया और इस चक्कर में देखा तो ब्लॉग उड़ चुका था। जाने उंगली किस बटन पर पड़ी कि लेख बिल्कुल गायब!

        जैसे तैसे मैंने अपने आप को संयत किया और सोचा क्यों ना एक कविता लिख दी जाए ।अब कविता लिखने बैठी और उधर से फिर कॉल आई। मैंने फोन काट दिया । जब आठवीं बार फोन आया तो मैंने गुस्से में कहा –“हां मैं सुहासनी भोंसले बोल रही हूं और इस दफा यदि तुमने फोन किया तो मैं सौ नंबर पर आपकी शिकायत करूंगी ।“

 उधर से उस लड़की का स्वर था, “ सॉरी मैम, आपकी आवाज नहीं आ रही ।“

  हमने सोचा अब तो कोई फोन नहीं आएगा । इन फोनों के चक्कर में मेरी कविता भी ब्लॉग से रफा दफा हो गई ।मुझे समझ नहीं आ रहा था कि हो क्या रहा है! आख़िरकार मैंने फोन एक तरफ बंद करके रख दिया और अपना कार्य रोक दिया ।

 दोपहर में फिर एक फोन आया ।

इस बार फिर एक नई मोहतरमा बोलीं, “ हेलो मैम, आप सुहासिनी भोसले बोल रही हैं? रूबी दिस साइड! मैं सुरक्षा वेबसाइट बिल्डर से बोल रही हूं ।हम वेब डिजाइन करते हैं ।क्या आपको एक वेबसाइट बनवानी थी? “

     मैंने कहा, “हां जी, बनवानी थी, रूबी जी ।“

   अब तक मैं बार-बार के फोन कॉल से तंग आ चुकी थी परंतु अब मैं उनकी तरह उनके सब्र का इम्तिहान लेना चाहती थी ।

    मैंने कहा-“ हां जी पर सिग्नल नहीं हैं आपकी आवाज नहीं आ रही है ।“

उन्होंने काटकर दोबारा फोन किया… “हैलो… सुहासिनी भोंसले.. क्या आपको सुनाई दे रहा है?”

  मैंने कहा ठंडी आह भर कहा, “हां जी सुनाई दे रहा है।“

      “क्या आपको वेबसाइट बनवानी थी ।“, उधर से फिर प्रश्न किया गया ।“मैम हम आपकी वेब डिजाइन में क्या सहायता कर सकते हैं, आप कैसी वेबसाइट बनवाना चाहेंगी? “

    मैंने कहा.. “देखिए रूबी जी, मुझे दो बेडरुम चाहिए.. एक ड्राइंग कम डाइनिंग रूम । हां बाथरूम भी साथ अटैच होने चाहिए और आगे पीछे बॉलकनी हो, ठीक है ना? आगे वाली बालकनी से इंद्रधनुष दिखाई देना जरूरी है! “

      उधर से वो हतप्रभ हो बोली, “मैम आप क्या बात कर रहे हैं?” मैंने हँसते हुए कहा, “आप ही कह रही हैं कि आप वेबसाइट बनाती है । तो मैं बता रही हूं मुझे कैसी वेबसाइट बनवानी है ।क्या आप मुझे ऐसी वेबसाइट बना देंगे जिसमें बालकनी से आगे इंद्रधनुष निकलता हुआ रोज नजर आए! मेरी एक शर्त ये भी है कि इस साइट के पास साइटसीन एकदम परफेक्ट हों।

अब उधर से खिसियाकर फोन काट दिया गया और मैं अपने बच्चों सहित हंस हंस के लोटपोट हो गई ।

मैंने सोचा था अब तो फोन नहीं आएगा । परंतु यह मेरा वहम था छः घंटे बाद शाम सात बजे के करीब फिर दोबारा फोन आया…., “हेलो मैं शैली बोल रही हूं, मैं shiksha.com से बोल रही हूं। हम वैब डिजाइन का काम करते हैं।”

“हां जी बोलिए।”

“क्या मैं सुहासिनी भौंसले से बात कर रही हूं?”

मैंने कहा,“ हां जी आप सुहासिनी भोसले से ही बात कर रही हैं, कहिए मैं आपके लिए क्या कर सकती हूं?” उधर से फिर एक महीन सी आवाज आई, “मैम हमारी कंपनी वेबसाइट बनाती है, क्या आपको एक वेबसाइट बनवानी थी। “

मैंने कहा शैली जी पहले आप मेरी एक बात का जवाब दीजिए… वह बोली ठीक है मैम …..

“आप वेज हैं कि नॉन वेज…।”

“जी मैं प्योर वेजीटेरियन हूँ।” उसने गर्व से कहा।

मैंने कहा, “पहले बताइए आपको कौन से सब्जी पसंद है?”

 उधर से हंसी के साथ आवाज आई, “आलू।”

मैंने कहा और बताइये… सब्जी नहीं सब्जियां बताइये। “ओह.. मतलब आलू, बैंगन, गोभी।”

मैंने थोड़ा सा चकित होते हुए पूछा… “बैंगन, गोभी?

हद कर दी आपने…. बैंगन और गोभी भी कोई खाने की चीज होती है?”

“नहीं मैम मुझे पसंद है ।”

“क्या आपको नहीं पता बैंगन और गोभी में कीड़े होते हैं? ”, मैंने बात बढ़ायी।

अब वह फिर हंसी.. बोली, “कीड़े तो हम निकाल देते हैं।”

मैंने कहा _“ऐसे कैसे निकाल सकते हो? माना आपने निकाल दिए कीड़े… लेकिन कभी सोचा है कि जब आप रेस्टोरेंट में जाकर खाना खाते हैं या बाहर जाकर खाना खाते हैं तो इस बात की क्या गारंटी है कि वह बैंगन और गोभी कीड़े वाली नहीं बना देते?”

उसने कहा, “मैडम ऐसा तो मैंने सोचा ही नहीं।”

 “ठीक है, चलो ठीक है… मान लिया कि आप वेजिटेरियन और नॉन वेजिटेरियन दोनों हैं।” मैं बोली। “नहीं मैडम, मैं नॉन वेज नहीं खाती!”

“मैंने फिर जवाब दिया… ऐसे कैसे नहीं खाती हैं नॉन वेज…. गोभी भी आप खाती हैं और बैंगन में भी! या तो आप मानिए कि आप नॉनवेज हैं तभी हम आगे बात करेंगे।”

“ ठीक है, मैंने मान लिया…”

“क्या आपको पता है सब्जियों के लिए कहां

मिलता है?”

वह बोली – “क्या कहा? अब इसमें थैला कहां से आ गया?”

मैंने कहा – “मैडम मुझे सब्जी लेने जाना था।मैं थैला ढूंढ रही थी और आप हैं की वेबसाइट वेबसाइट कर रहीं हैं।”

“ओह सॉरी।”

मैंने कहा – “यह बताइए आपको मेरा नंबर कहां से मिला?”

वह बोली – “इंटरनेट से।”

मैंने कहा – “अब यह बताइए क्या इंटरनेट पर केवल मेरा ही नंबर है दिमाग खाने के लिए? सुबह से कितने कॉल आ चुके हैं। अभी तक आप लोग मेरा बैंड बजा रहे थे और अब मैं आपका… तो बताइए क्या अभी भी आप वेबसाइट बनाना चाहेंगी?”

उसने हंस कर कहा- “आपसे बात करके अच्छा लगा, सॉरी..”

VIAPriti Raghav Chauhan
SOURCEPriti Raghav
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नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

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