वाराणसी मैं आ रही हूँ!

वाराणसी

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चाहती हूँ

भारत को करीब से देखना,

उसकी आत्मा को छूना,

ब्रह्मपुत्र के उद्गम से,

नर्मदा की हर धार तक बहना।

 

चाहती हूँ

कावेरी की लहरों में गहराई ढूंढना,

और गंगा की धारा में

सदियों का इतिहास पढ़ना।

 

अस्सी के घाटों पर

बैठकर हर शंकर से मिलना,

उनकी धुन में खोकर

खुद को फिर से पाना।

 

भारत, तुम्हें जीना चाहती हूँ,

तुम्हारी रगों में बहना चाहती हूँ,

और हर शंकर से

साक्षात्कार करना चाहती हूँ।

 

लो, वाराणसी, इस बार

तुमसे मिलने आ रही हूँ,

तुम्हारी गलियों की गूंज

अपनी साँसों में भरने आ रही हूँ।

 

अस्सी के घाटों पर

शाम की आरती का स्वर सुनने,

तुम्हारे शंकर से

कुछ सवाल करने आ रही हूँ।

 

तुम्हारी सीढ़ियों पर बैठकर

वक्त की कहानियाँ पढ़ूँगी,

और गंगा की लहरों में

अपने सपने गिनूँगी।

 

तुम्हारे मंदिरों की घंटियाँ

मेरे मन के सन्नाटे को तोड़ेंगी,

तुम्हारे माटी की खुशबू

मेरे अस्तित्व को जोड़ेंगी।

 

लो, वाराणसी, इस बार

तुम्हारे आँगन में

अपने शंकर का

आचमन करने आ रही हूँ।

तुम्हें नमन् करने आ रही हूँ।। 

प्रीति राघव चौहान 

 

 

VIAप्रीति राघव चौहान
SOURCEPRITI RAGHAV CHAUHAN
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नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

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