मेवाती

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मेवाती
मेवाती

दो दिन से लंच बॉक्स स्कूल में भूलरही थी तीसरे दिन फिर एक बैग और लंच बॉक्स लिए वह स्कूल पहुंची। विद्यालय के सभी सहयोगी चुटकी ले रहे थे… हर दिन नया लंच बॉक्स? मैत्रेयी ने तीसरे दिन सभी को एक ही बड़े बैग में डाल लिया। जल्दबाजी में घर पहुंचने पर थैला फिर नदारद था। कहाँ गया? या तो मेवात की ईको में या स्कूल की आफिस की कुर्सी पर। अगले रोज लंच बॉक्स चर्चा के संग चुहलबाजी का कारण बन गए। स्कूल में थैला नहीं मिला। चार दिन बीत गए तीन – तीन लंच बॉक्स खोने का मलाल। चौकीदार या ईको वाला दोनों में से कोई तो चोर है? जो भी मिलता.. बैग मिला कि नहीं? कहते हुए मुस्कुरा रहा था।

मैडम पिछली बार कहाँ रखा था बैग? स्टॉफ रूम में एक ने फिर पूछा। शायद ईको में या फिर आफिस की कुर्सी पर..

ये लो इन्हें ये भी याद नहीं! कहते हुए वो हँसी साथ ही सभी हँसे। खिल्ली उड़ाना कुछ ऐसा ही होता है शायद।

पहले दिन लंच- बॉक्स एक आटो में भूली जैसे- तैसे वो अगले दिन वापस आया तो अगले रोज एक कार्यक्रम के सिलसिले में दूसरे स्कूल जाना पड़ा सो दूसरा बैग भी विद्यालय में ही छोड़ना पड़ा और फिर तीसरे दिन तो…

आज तक मेरा कोई सामान चोरी नहीं हुआ। हुआ भी तो मिल गया है – मैत्रेयी ने सफाई दी। चौकीदार से पूछ ही लिया, उसने तो देखा ही नहीं.. अब बचा ईको वाला.. बस उसी की वैन में रहा होगा। आज पूरे सात दिन होने को आए। यदि उसकी नीयत सही होती तो वापस कर गया होता। क्या उसे पता नहीं था सवारी कहाँ से बैठी? है तो मेवाती ही! पन्द्रह बरस से इस गांव में पढ़ा रही है मैट्रो सिटी की मैत्रेयी। किंतु पिछले दंगों के बाद से इस थैले के कारण उसके यकीन की चूलें हिल गईं अब पूरा मेवात उसे समाचार में दिखाएं मेवात जैसा दिख रहा था।

‘मैडम जी अब तो खरीद लो नया लंच बॉक्स! ‘ – फिर नेहा ने हँसकर कहा।

 

‘नहीं अब या तो वही वापस आएँगे या रोटी सब्जी यूँ ही फॉईल में आएँगी।’, मैत्रेयी ने कहा। उसका यकीन डगमगा गया था।

 

‘आपने वैन वाले से पूछा भी है?दो दिन से तो छुट्टी थी। ‘ नेहा ने फिर पूछा।

‘कैसे पूछती? उसने तो दर्शन ही नहीं दिये।

चलो आज सही…

छुट्टी के बाद घर जाने की इतनी जल्दी होती है किसी और तरफ ध्यान ही नहीं होता। अचानक वैन में बैठे एक मास्टर जी ने जोर से पुकारते हुए कहा मैम जी-आपका बैग.. और लंच बॉक्स के उस पिटारे को ले मैत्रेयी विजित भाव से मुस्कुरा रही थी। वो ईको वाले की तरफ विनम्र भाव से देख मुस्कुरा उठी।

 

 

 

 

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नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

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