बंध्या

माँ

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गृह प्रवेश करते ही

पूछना

क्या हुआ

क्यों है पशेमां

और कहना उसका

तल्ख ज़बान में

ऐ माँ तू ही है

मेरा अश्क ए पता

तेरा मेरे सामने बैठना

मुझे यूँ बेवजह निहारना

बस यही तो है इक वो वजह

कि मेरी है उससे दुआ

मेरी माँ को

तू अब उठा ले खुदा…

है मेरी भी अरदास ये

बच्चों की सुन

बस बहुत हुआ

 साथ एक है प्रार्थना

ना फिर धरा पे पुकारना

फिर भी जरूरी हो तुझे

बंध्या करके उतारना..

 

VIAPriti Raghav Chauhan
SOURCEPritiraghavchauhan
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नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

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