तिनका

सरस्वती खो गई

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तितलियों से रंग ले

वो उड़ती पात पात पर 

मुमुस्कुराती झूमती

वो समय की बिसात पर

मुट्ठियाँ कसी हुई

हौंसले बुलंद थे 

लाल लाल अधरों

पर रौशन हजारों छंद थे

तेजस्विनी के भाल पर

सुकुमार तेज था 

रोम रोम गर्विता का

ज्ञान से लबरेज था 

जो भी उसको देखता

बस देखता ही रह गया

उसकी लिखी तान पर

साथ उसके बह गया

एक रोज़ तिनका एक

उसकी आँख में पड़ा

हृदय में लगा था शूल

आँख से उबल पड़ा

शरारतें और शोखियाँ

जो आँखों का सुरूर थीं

लहू बन ढलक रहीं वो

गुल तो बेकसूर थी

इबारतें लिखी गई

इश्तहार भी हुआ 

वो शूल सा तिनका

मगर शर्मसार न हुआ

आज उस बागीचे में हैं

बेशुमार तितलियाँ 

मगर न पीछे दौडतीं

वो नन्ही नन्ही उंगलियाँ 

जिन्दा है तेजस्विनी

जिन्दादिली खो गई 

ज्ञान गंगा थी जो कल

सरस्वती वो खो गई 

                      प्रीति राघव चौहान 

VIAPriti Raghav Chauhan
SOURCEPriti Raghav Chauhan
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नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

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