जमाने के चलन देखे PritiRaghav Chauhan जमाने के चलन देखे नई कविता
जमाने के चलन देखे
जमाने के चलन देखे
PRITI RAGHAV CHAUHAN
जमाने के चलन देखे
खिले साहब चमन देखे
मगर वह देख ना पाये
जो ठहरा सा लबों पर था…
आंखों में सवाल थे
दिल में कुछ मलाल थे
खामोशियों से निकले जो
अल्फाज भी कमाल थे
कहा था जो न पूरा था
सुनाना भी अधूरा था
जो इस खेल में खोया
हँसमुख इक जमूरा था
हवाएँ चुप्पी साधे थीं
थी हर शाख गफ़लत में
बस इक घास थी मुँहजोर
जो तन बैठी थी उलफत में
निभी ऊँचे मकानों से
भला तिनकों की यारी कब
वो चिड़िया अब नदारद है
जो महलों के सहन में थी
वो लम्हे सबसे उम्दा थे
वो लम्हे भूल न पाये
सभी के हाथ खाली थे
सभी हाथों से ताली थी
“प्रीति राघव चौहान ”