जमाने के चलन देखे 

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जमाने के चलन देखे PritiRaghav Chauhan जमाने के चलन देखे नई कविता

जमाने के चलन देखे

 

 

जमाने के चलन देखे

 

PRITI RAGHAV CHAUHAN

 

जमाने के चलन देखे

खिले साहब चमन देखे

मगर वह देख ना पाये

जो ठहरा सा लबों पर था…

 

 

आंखों में सवाल थे

दिल में कुछ मलाल थे

खामोशियों से निकले जो

अल्फाज भी कमाल थे

 

कहा था जो न पूरा था

सुनाना भी अधूरा था

जो इस खेल में खोया

हँसमुख इक जमूरा था

 

हवाएँ चुप्पी साधे थीं

थी हर शाख गफ़लत में

बस इक घास थी मुँहजोर

जो तन बैठी थी उलफत में

 

निभी ऊँचे मकानों से

भला तिनकों की यारी कब

वो चिड़िया अब नदारद है

जो महलों के सहन में थी

 

वो लम्हे सबसे उम्दा थे

वो लम्हे भूल न पाये

सभी के हाथ खाली थे

सभी हाथों से ताली थी

“प्रीति राघव चौहान ”

 

 

 

 

 

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नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

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