कुछ, न पाने की कसक
सब कुछ होने से ज्यादा है।
चाँद समूचा खिड़की में
पर अंधकार से वादा है
मंज़िल पर आ बैठे हैं
प्यास मगर है राह की बाकी
जो छूटा बस वो ही भीतर
अजब अनकहा इक बैरागी
कुछ, न पाने की कसक
सब कुछ होने से ज्यादा है,
हर इच्छा का पूरा होना
इक दलदल बन जाना है,
बहने के यदि रस्ते न हो
कमल नित नया खिलाना है
कुछ, न पाने की कसक
सब कुछ होने से ज्यादा है,
कुछ, न पाने की कसक
सब कुछ होने से ज्यादा है।
चाँद समूचा खिड़की में
पर अंधकार से वादा है
मंज़िल पर आ बैठे हैं
प्यास मगर है राह की बाकी
जो छूटा बस वो ही भीतर
अजब अनकहा इक बैरागी
कुछ, न पाने की कसक
सब कुछ होने से ज्यादा है,
हर इच्छा का पूरा होना
इक दलदल बन जाना है,
बहने के यदि रस्ते न हो
कमल नित नया खिलाना है
कुछ, न पाने की कसक
सब कुछ होने से ज्यादा है,