हिंद महासागर का तारा और चाभी वाला यह देश जो विशाल नीला सागर और स्वप्निल दुग्धिया समुद्र तट से घिरा हुआ है और जिसके बारे में कभी मार्कट्वेन ने कहा था कि ईश्वर ने स्वर्ग की रचना मारिशस को देखकर की होगी। निसंदेह सच है। वैसा ही खूबसूरत चांद पर भी दाग ​​है जैसे मारिशस के इतिहास को भी दागदार बनाया गया है यहां की छवि राजनीति ने बनाई है। जो जागते इंसानों को गिरमिटिया बना दिया। 

                     गिरमिट शब्द अंग्रेजी भाषा के शब्द “एग्रीमेंट” से लिया गया है – भारतीय खाते के साथ ब्रिटिश सरकार के “अनुबंध” से। खातों के एलियन हिस्सों में रहने की अवधि और ब्रिटिश राज में उनके लौटने से जुड़ी शिकायतों को बताया गया। 8 रुपये प्रति माह (1826 में लगभग 4 डॉलर) और राशन के साथ पांच साल के श्रम की अवधि को रेखांकित किया गया था, पहुंच को पांडिचेरी और किएकल से ले जाया गया।यह बात और है कि उस समय जाने वाले अधिकांश मतदाता अनपढ़ थे जिन्हें पता नहीं था कि वे किन कागजों पर हस्ताक्षर कर रहे हैं। कुछ लोगों ने इसे जहां की संज्ञा दी। जहांजी का अर्थ ‘जहाज के लोग’ या ‘जहाज के माध्यम से आने वाले लोग’ है। कहीं भी लगे लोगों ने इसे कन्त्राकी कहा, और इस तरह कृषि या देनदारियों के तहत पानी के जहाजों से सुदूर द्वीप देश ले गए किसान मजदूर गिरमिटिया या कन्त्राकी और जहां जी कहलाये। एम वी एटलस नामक जहाज 36 लाने के पहले जत्थे को लेकर पहला जहाज 2 देखें 1834 में पोर्ट लुई के अप्रवासी घाट पर। 

दो जून की रोटी को

समंदर पार किए

देश पराया लोग शुरू होंगे

 सब कुछ जिन पर वार दिया

अभाव मील अन्याय मिला

अनथक प्रयत्नों पर जारी थे

यह छत्तीस गिरमिटिया ही थे

जो मॉरीशस पर भारी थे

19वीं शताब्दी की शुरुआत में व्यापार के उन्मूलन के बाद, दस लाख से अधिक भारतीयों को दास श्रम के विकल्प के रूप में यूरोपीय उपनिवेशों में ले जाया गया था। 1838 तक, 25,000 भारतीय शेयर को मॉरीशस भेजा गया था। इस तरह 180 साल तक। लगभग डेढ़ लाख भारतीय बिहार पूर्वी उत्तर प्रदेश और भारतीय दक्षिण भारतीय राज्य बहुत से अपनी किस्मत में आज स्वर्ग में आ गए हैं। दास का पैसा चुकाए जाने पर भी दासता से मुक्त नहीं हो सकता है, लेकिन गिरमिटियों के साथ केवल इतनी ही बाध्यता थी कि वे पांच साल बाद छूट प्राप्त कर सकते थे। गिरमिट छूट तो हो सकती थी, लेकिन उनके पास वापस भारत लौटने को पैसे नहीं थे। उनके पास उनके अलावा और कोई कर नहीं होता था कि या तो अपने ही मालिक के पास काम कर लें या किसी अन्य मालिक के गिरमिटिया हो जाएं। वे भी बिक जाते हैं। काम न करना, कामचोरी करने पर प्रताड़ित किए जा सकते थे। आम तौर पर गिरमिटिया परेशान करती है और हो या मराठित उसे विवाह करने की छूट नहीं थी। यदि कुछ गिरमिटिया विवाह भी करते हैं तो उन पर भी दासता वाले नियम लागू होते हैं। जैसे और किसी को प्रतिबंधित किया जा सकता था और बच्चे में से किसी का भी और किसी का भी उल्लंघन किया जा सकता था। गिरमिटियों (पुरुषों) के साथ पचास प्रतिशत और देखे गए थे, युवा और इंग्लैंड के मालिक रखते थे। आकर्षण खत्म होने पर यह और इसे आकर्षित करने के लिए अनुशंसित किए गए थे। गिरमिटियों की कुप्रथाएं होने वाली संपत्ति थीं। मालिक चाहे तो बच्चों से बड़ा होने पर अपने यहां काम करें या दूसरों को बेच दें। गिरमिटियों को केवल जीवित रहने वाले भोजन, वस्त्रादि दिए गए थे। इन्हें शिक्षा, मनोरंजन आदि बुनियादी बातों से अपरिचित रखा गया था। यह 12 से 18 घंटे तक रोजाना काम-कम मेहनत करते थे। अमानवीय परिस्थितियों में काम करते-करते सैकड़ों नौकर हर साल अकाल से मरते थे। मंडी के जुल्म की कहीं सुनवाई नहीं हुई थी। मनोरंजन आदि मूलभूत तत्वों से विमुख हो गया था। यह 12 से 18 घंटे तक रोजाना काम-कम मेहनत करते थे। अमानवीय परिस्थितियों में काम करते-करते सैकड़ों नौकर हर साल अकाल से मरते थे। मंडी के जुल्म की कहीं सुनवाई नहीं हुई थी। 

       आइजनहोलर कहते हैं, उन्होंने हिंदी को अपनी “मातृभाषा” और “पैतृक भाषा” देश संरक्षित करने का प्रयास किया है। महात्मा गांधी को पहली गिरमिटिया कहते थे। मॉरीशस की जनसंख्या में आज लगभग 68 प्रतिशत भारतीय हैं। इनमें से आधे से ज्यादा करीब 52 प्रतिशत उत्तर भारत के लोग हैं, जिनके पूर्वज भोजपुरी बोलते थे। यह उत्तर भारत के लाए का जीवट था कि वे विपरीत प्रकृति में जल रहे और काम करते रहे, पर यह मॉरीशस की नाराजगी भी थी, उन्होंने उन भारतीयों को फलने-फूलने और आगे बढ़ने का मौका दिया। विषम सामाजिक, आर्थिक और प्राकृतिक प्रकृति के बावजूद उसकी हिंदू पहचान और उसकी सांस्कृतिक विरासत का विनाश नहीं हुआ। उनके बाद के कई सत्य, आज मॉरीशस की राजनीति और समाज में दबदबा है, उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को और प्रजा बनाया गया है। इसका एक उदाहरण शिवसागर रामगुलाम हैं, जो अंग्रेजों की गुलामी से मॉरीशस के मुक्त होने के बाद वहां के पहले प्रधानमंत्री बने थे। उन्हें मॉरीशस में राष्ट्रपिता का स्तर हासिल हुआ। मॉरिसस में धार्मिक आस्था के स्तर पर एक असफल का नवजागरण चल रहा है, इसके पीछे कई हिंदू संगठनों के दशकों की मेहनत है। भारत से दूर इस छोटे भारत की बड़ी आबादी अपने पितृराष्ट्र के साथ धार्मिक और आध्यात्मिक स्तर पर एकाकार हो गई है। महाशिवरात्रि मॉरीशस की सबसे बड़ी त्योहार है। पूरे 9 दिन यहां दूर-दूर से हिंदू देशों के लोग आते हैं और शिव वंदना करते हैं। भारत की गंगा यहां भी गंगा तालाब के रूप में वंदनीय हैं यहां सभी देवी देवता आपको एक ही स्थान पर मिल जाएंगे। संस्कृति की बात हो और यहां के मॉरीशस के रामायण केंद्र का उल्लेख ना हो ऐसा हो ही नहीं सकता रामायण अध्ययन का अंतरराष्ट्रीय केंद्र है जहां लोग रामायण और हिंदू धर्म के अध्ययन करते हैं। मारीशस में रामायण की शिक्षाएं इतनी महत्वपूर्ण हैं कि हैरतअंगेज बात यह है कि बिहार, उत्तरप्रदेश और छोटा नागारा से आए पूर्वी भारत के संबंधित पहलुओं ने अपनी परंपरागत पोशाक को कभी नहीं छोड़ा।स्थानीय राजनीति में आज भी इन गिरमिटियों के वंशजों का दबदबा है। मॉरीशस में कुछ जरूरी खाद्य पदार्थ जो आपको भारतीय घर के ढके हुए भोजन की याद दिलाएंगे, वे काली मिर्च के पकौड़े या गटेऊ हैं, जो अलग-अलग भरावन जैसे कि भीगी हुई दाल, प्याज, कसावा और आलू का उपयोग करके बनाए जाते हैं, जिन्हें नारियल की चटनी या अनुचार के साथ भोजन करते हैं। ढोल पुरी भारतीय शैली का फ्लैटब्रेड, चना दाल से घिरा हुआ है और मक्खन मिक्स करी, रूगैल, चिली सॉस, और ब्रेड (उबले हुए साग) के साथ ऑक्सीट्रोक्साइड है, इसे मॉरीशस का राष्ट्रीय व्यंजन कहते हैं तो अतिशयोक्ति न होगी। यह एक बेहतरीन भारतीय स्ट्रीट फूड है। भारत के गिरमिटिया मजदूर जो 1800 के दशक के अंत में इस भोजन को मॉरीशस लुक देते थे। जब वो द्वीप के गन्ने की अस्पष्टता में काम करने लगे। पसंदीदा-खाना पसंद करने वालों को रोल के साथ परोसे जाने वाले गर्मागर्म काली मिर्च के पेस्ट को जरूर चखना चाहिए।सबसे बड़ी हैरानी की बात जो समान है कि यहां करीब 300 हिंदी भाषी मंदिरों का एक अलग संगठन है जिसके कई मंदिरों में हिंदी की आवश्यकताएं हैं जिनमें बच्चों के लिए हिंदी का अक्षर ज्ञान देखा जाता है जो आपके अंदर झांकता है और तमिल मॉरीशस में अच्छा है। मंदिरों की संख्या में भी तेजी से वृद्धि हो रही है और तमिल भाषी लोगों के मंदिरों का संगठन भी भारतीयता और अध्यात्म कीर्तिताका सदैव यूँ ही ऊर्ध्वगामी रहे हैं।                     मारिशस में हिंदी, भोजपुरी और मिश्रित यूरोपीय आकाशगंगा में प्रकाशन हो रहा है। किस विश्व हिंदी पत्रिका के नाम की एक हिंदी पत्रिका भी है। भारत के बिहार राज्य के एक संग्रहालय परिसर में ऐसे ही बिहारियों को समर्पित ‘डायस्पोरा’ नामक कला दीर्घा बनाई गई है। यहां भोजपुर के शेक्सपियर कहते हैं जाने वाले भिखारी ठाकुर की नाट्य लीला बिदेसिया के साथ उनके व्यक्तिगत जीवन की कई कहानियों को दीर्घा में शुरू की गई फिल्म के जरिए अनवरत पेश किया जाता है। संग्रहालय में बने प्रवास दीर्घा में प्रवेश करते ही आपको अपनी मिट्टी की याद ताजा हो जाती है जाएगा। दीर्घा के अंदर पुराने और बड़े पैमाने पर आने वाले वट वृक्ष और बिहार के पारंपरिक गीत-संगीत से जुड़े कई क्षणों को भी दीर्घा में रखा गया है। उसी दूसरी ओर दीर्घा में टीवी स्क्रीन पर भिखारी ठाकुर के बिदेसिया नाटक के पड़ोसी प्रवासी लोगों की पीड़ा को दिखाया गया है।भारत को अपनी सभ्यता और संस्कृति पर गर्व है और उससे भी अधिक अपने बिदेसी बंधुओं पर जो आज भी अपनी सभ्यता को विश्व में वन्दनीय बनाए हुए हैं।

खिंचाव भर गिरमिटियों से

एक दूजा हिन्दुस्तानी

नील समंदर के तट पर

गंगा का दोआब बना

काला कल था

अब विशिष्ट हैं स्वर्णिम पल

 हिंद महासागर से जुड़े

ये देश हिंद की शान बना

वंदे भारत! वंदे मारिशस!

“प्रीति राघव चौहान”


VIAPriti Raghav Chauhan
SOURCEPriti Raghav Chauhan
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नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

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