किताबों में किस्से हैं
स्याह सफेद किरदारों के
हमारे /तुम्हारे /इसके /उसके
जाने किस किस के किस्से
जो काले हर्फ़ों में भी बोलते हैं
किस्से दीवानी झगड़ों से
जो कभी नहीं होते
खत्म हर पल चिढ़ाते
सिराहने पड़े मुस्कुराते
नज़र के सामने उठते बैठते
चलते लड़खड़ाते
आँसू बन ढलकते
चिंगारी से सुलगते
अबूझ पहेली से किस्से
रूठी सहेली के किस्से...
इन किस्सों में किस्सागोई भी है
खिड़की से झांकता सुखोई भी है
किस्सों में कहीं सूखे खलिहान हैं
कहीं देश पर मरते जवान हैं
तन्हाइयों के, रुसवाइयों के
रानाइयों के, परछाइयों के
ये तमाम किस्से फोनी से
अन्तरतट पर टकराते हैं
हाहाकार मचाते हैं
पढ़कर हम निर्लिप्त नि
कल जाते हैं“प्रीति राघव चौहान”
Untold stories किस्से
किस्से