रही होगी वजह कोई.. प्रीति

रही होगी वजह कोई जो उसने छोड़ दी महफिल उसे मगरूर कहकर क्यों भला हर पल चिढ़ाते हो है ढाई चाल में माहिर ना बैसाखियों पर जा है लम्बी रेस...

बंध्या

गृह प्रवेश करते ही पूछना क्या हुआ क्यों है पशेमां और कहना उसका तल्ख ज़बान में ऐ माँ तू ही है मेरा अश्क ए पता तेरा मेरे सामने बैठना मुझे यूँ बेवजह निहारना बस...

सोशल मीडिया दीमक है

वो सुनेंगे भी देखेंगे भी पर कर सकेंगे कुछ नहीं वो क्या जाने सोशल मीडिया दीमक है.. मीडिया से भी भयावह दांत वाला हाथ वाला हाथ भी ऐसे कांधों पे बिठा लें जी में आये तो कुर्सी से...

दिल से

वो जिन्हें लेकर मुझे गुमां था दोस्ती का वो मेरे दोस्त नहीं महज़ खंजर थे जनाब यकीन न हो तो आप भी आजमां देखें चेहरे पर रमज़ान...

अशआर

क्या जरूरी है कि कुछ बोल के समझाया जाये लोग चुप रह कर भी हाले दिल बयान करतें हैं हर बात बोल के समझाओ ये जरूरी...

No more jokes on ladies…

मैं औरत हूँ हर सब्जी में मिल खुश होना चाहती हूँ क्या करूँ उसने हरा जामा पहनाया लगे अगर किसी को मेरा क्या कुसूर मैं भी सोई हुई थी.. अचानक जागरण हुआ  क्या...

कुछ अशआर.. ए..दिल

मैं अपने काम को निष्ठा से करती आई हूँ मुझे परवाह नहीं वो राजा हैं या औरंगजेब ************************* बेहतर है हम अपने काम में  ईमान कायम रखें दुनिया की...

माँ मैं आ गई

लो माँ  वक्त से पहले ही चली आई मैं पर भाई की तरह ना छकाया ना रुलाया ना सताया ना साज ना आवाज़ ना ढोल ताशे ना बनी सबकी सरताज जो भी आता...

संजय तुम कहाँ हो

संजय तुम कहाँ हो ज्येष्ठ माह जब सर ढक कर चलना मजबूरी हो जाती है उसी ज्येष्ठ माह में पहले एक विधवा ने अपना सर मुंडवाया भीड़ रोई प्रजातंत्र मुस्कुराया अब हरियाणा...