खुशहाली को खुशी खा गई
मंदिर मंदिर बैठे पंडे

मंदिर मंदिर बैठे पंडे

मंदिर बाहर बैठे वृद्ध

राम ढूंढते वन वन भटके

घर के ऊपर फिरते गिद्ध 

खुशहाली को खुशी खा गई 

सड़कों पर है बदहाली 

दिल्ली से है दूर बहुत 

अब भी जनता की दीवाली

बड़ा समुन्दर गोपी चंदर

खेल निगल रही व्हेल 

भूखे नंगे करें कब्बडी

ओलंपिक में फेल 

हर धाम पर कोटि देव 

हर देव के आगे थाली

जाने कहाँ गई मढैया

घर के बाहर वाली 

हर मंदिर स्कूल बना दो

पंडों को दो फिर शिक्षा 

हाथ तुम्हारे जगन्नाथ हैं 

बहुत हो गई भिक्षा 

लाख ऊँचे हों गुम्बद मीनारें

इक इक कर ढह जाएंगी 

कोटि कोटि शिक्षित जनता

भारत का भाग्य बनाएगी

VIAPriti Raghav Chauhan
SOURCEप्रीति राघव चौहान
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नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

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