थारे छोरे जितनी पढ़ री(हरियाणवी गीत)

जागो री

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थारे छोरे जितनी पढ़ री सूँ
मत ना कहो सिर पे चढ़ री सूँ
मैं घूँघट ऊँगट ना काढ़ू
मनै सूट सिमा दो माता जी
मैं नथनी वथनी ना पहरूँ
मनै टैब दिला दो माता जी

थारा छोरा मोटर साइकल पै
मैं कार चला कै लाई सूँ
वो पेपर देवण लाग रया
मैं जहाँ पढ़ा के आई सूँ
मनै पटरी वटरी मत ना दो
मनै कुर्सी ला दो माता जी

थारे वाले दिन धुँआ हुये
मै बायो गैस लगा लूँगी
ना पंखे एसी बंद करो
मैं सोलर प्लांट लगा दूँगी
ये नाटक वाटक बंद करो
अब न्यूज चला दो माता जी

  1. मत ना टाईम वेस्ट करो
    गाजर का हलुआ टेस्ट करो
    मनै मेड लगा ली रैस्ट करो
    थम मत ना अब प्रोटैस्ट करो
    ये चुगली चाटी बंद करो
    अब टांग ना खींचो माताजी
VIAPritiraghavchauhan
SOURCEpritiraghavchauhan. com
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नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

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