कागज की नाव.. 

रात भर बादलों ने

जमकर किया नृत्य 

हर छत-हर पात पर

कुछ इस तरह कि

सूरज खुलकर मुस्काना भूल गया

बस धीरे-धीरे भीगी

हर चीज़… हर कोना… हर सरमाया ।

बस चुपचाप आकर रख दी 

थोड़ी नमी, थोड़ी थकन जैसे ।

दरवाज़े पर पानी ने दस्तक दी,

मैंने खींच लिए कदम पीछे

चप्पलें भी भीगी-सी बोलीं —

“आज कहीं जाना मत।

बस बैठो खिड़की के पास

थोड़ा देखो ये मौसम, बस।”

न धूप थी, न अँधियारा,

ये बीच का कोई सपना था।

ये जेठ की एक सुबह थी

 गीली सी,

कुछ रूकी-रूकी, 

कुछ सीली सी।

उस गीली सुबह में

कोई शब्द नहीं थे,

सिर्फ एक रिक्त स्थान था

जहाँ तुम्हें होना था

और तैरानी थी एक.. 

कागज की नाव! 

प्रीति राघव चौहान 

 

VIAPritiRaghavChauhan
SOURCEPriti Raghav Chauhan
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नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

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