मुंडकल्ली
दरवाज़ो के पीछे हँसती खिलखिलातीं हैं
दहलीज़ के भीतर देखतीं हैं
सपने अंतरिक्ष के
घर से विद्यालय के रास्ते के सिवा नहीं देखा उन्होंने कोई रास्ता
पिछली दफा चार साल पहले
गईं होगी पास के ही गांव में
अपनी बूआ या मौसी के घर
आज पहली बार है जब वह
जा रहीं हैं राजधानी में
आयोजित मैराथन में
उनकी आँखों में रतजगा है
मुँह अंधेरे साढ़े तीन
पहुंच गई हैं विद्यालय
पहली बार है जब
उन्होंने पहने हुए हैं जूतें
आज पहली बार है जब उन्होंने
सकुचाते हुए पहनी है अपनी लम्बी धारीदार कमीज पर टीशर्ट
रख दिये हैं दुपट्टे तहाकर
बस के भीतर
धनी लोगों द्वारा आयोजित
मँहगी मैराथन का ध्येय
कैंसर के लिए अनुदान इक्कठा करना है
एक एन जी ओ ने भरकर एंट्री फीस
दे दिए हैं पंख टी शर्ट के रूप में
पैरों को काट रहे हैं जूतें
बिन जुराबों के
फिर भी पहियों को मात दे रहे हैं
एक बड़ा हुजूम देख रहा है इन
धुर ग्रामीण बालाओं को….
जिन्हें सिखाया जाता है
हँसना खिलखिलाना गुनाह है
वो वार्मअप के लिए कर रहीं हैं
अनजाने अंग्रेजी गीतों पर नृत्य
वो उड़नपरी सी उड़ते हुए
देख रहीं हैं महानगरीय
कोमल बालाओं को
वो देख रहीं हैं उनके स्पामय बाल
वो देख रहीं उनकी कसी हुई
लैगिंग जैगिंग निक्कर शार्टस
और मुंह छिपाकर हँस रही हैं
उनके कसे हुए परिधानों पर
वो अनभिज्ञ हैं मीडिया के आकर्षण का केंद्र है उनका गंवारू बाना
सलवार कमीज़ पर टीशर्ट
सबसे आगे दौड़ते हुए
भी रह गईं हैं पीछे
उनके हिस्से के इनाम
जाने कौन ले उड़ा है
फिर भी उनके चेहरे की खुशी
उन गुलाबी फूलों से एकाकार हो रही है
जिनके पास बैठ कर खिंचवाई
उन्होंने तस्वीरें
महानगर की ऊँची अट्टालिकाएँ
हतप्रभ कर रहीं हैं उन्हें
एक सपना सुबह का देखा हो जैसे
छनाक से टूटा अगली सुबह
जब मस्जिद के मौलवी ने
नन्हें हाथों पर बरसाकर छड़ी
कहा-कहाँ नाच रहीं थी *मुंडकल्ली
“प्रीति राघव चौहान”
*नंगे सिर, दुपट्टे के बिना