मासिकधर्म धर्म में बाधा क्यों?

सृष्टि की सृजन हारी क्यों दूर सृष्टा से नारी?

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मासिक धर्म के समय स्त्रियों को रसोईघर से दूर रखें, धार्मिक कार्यों से दूर रखें…. ये पुरातनपंथी विचारधारा है। आज जहाँ कहीं शिक्षा का प्रसार हुआ है वहाँ लड़कियों के साथ ऐसी कोई समस्या नहीं है। जो गांव अभी भी जहालत में डूबे हुए हैं वहां ऐसा देखा जा सकता है । कुल मिलाकर हम यह कह सकते हैं इसका सबसे बड़ा कारण अशिक्षा, गरीबी.,स्वच्छता, स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हैं व कुछ धार्मिक मान्यताएं भी हैं।

प्राचीन काल में कई वर्षों पूर्व ऐसा होता था कि स्त्रियों को मासिक धर्म के समय रसोई अन्य कोई भी धार्मिक कार्यों से दूर रखा जाता था उन्हें नहीं पता था के एक रजस्वला स्त्री जिसके कपड़े रक्त रंजित हों व निरन्तर रक्तधारा प्रवाह मान हो उससे कैसा बर्ताव करें? ज्ञान के अभाव में जैसा सदियों से चला आ रहा है वैसा ही करते जाना इनकी मजबूरी भी थी अज्ञानता भी।क्योंकि यह सब देखने में भद्दा लगता था इसीलिए वह उन्हें एक एक अलग निर्जन स्थान पर कोठरी मे रखा जाता था जहां उनके लिए केवल घास का बिछौना टाट – बोरी का बिछौना रखा जाता था। यहां तक कि उनको खाट भी मुहैया नहीं कराई जाती थी। इसके पीछे एक कारण यही था कि कपड़े गंदे होंगे और उनसे बुरी गंध आएगी दिखने में ये सब बुरा लगता था इसीलिए समाज उन्हें सामने नहीं आने देना चाहता था। यही कारण था कि उनका धार्मिक कार्यों में सामने आना भी वर्जित था। एक कारण यह भी था उस वक्त स्त्रियों को अच्छा भोजन कम मिलता था जिससे मासिक धर्म के समय बीमार और अशक्त महसूस किया करतीं थीं। इन दिनों उन्हें पूर्णतया प्रत्येक कार्य से अलग रखा जाता था। आज जमाना बदल चुका है। आज बच्चियाँ पढ़ लिख रहीं हैं, आगे आ रही हैं। वह जानतीं हैं कि ये शरीर का बेकार रक्त है और महीने में एक बार इस चक्र को पूरा होना ही है। वे जानतीं हैं कि इस मासिकधर्म के कारण ही वे नव सृष्टि का सृजन कर सकती हैं। इसीलिए वह आधुनिक तरीकों का इस्तेमाल करती हैं। आज माता पिता बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर पहले ही जागरूक हैं। वे उनके खान-पान का भी पूरा ध्यान रखते हैं। जब उनके शरीर से पुराना रक्त जाता है तो उसकी प्रतिपूर्ति पौष्टिक खाद्य पदार्थों से करते हैं। आज लड़कियां हर क्षेत्र में कंधे से कंधा मिलाकर आगे रहतीं हैं। हां यह सच है की मासिक धर्म के समय बाकी दिनों की अपेक्षा कुछ कमजोर हो जाती हैं तथा अलग अलग समस्याओं से जूझतीं हैं लेकिन इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि वे किसी भी कार्य से दूर रहें। आज भी धार्मिक कार्यों को लेकर यह मान्यता बनी हुई है कि रजस्वला स्त्री किसी धार्मिक कार्य में हिस्सा नहीं लेगी। वक्त के साथ-साथ यह सोच भी हमें बदलनी होगी और बेहतर है इसके लिए हम खुलकर आगे आयें।

VIAPriti Raghav Chauhan
SOURCEप्रीति राघव चौहान
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नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

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