एक किसान की कसक…
नहीं चाहता मैं विरोध को
नहीं चाहता गतिरोध को
नहीं चाहता लालकिला मैं
मुझको बस इतना भर कर दो
कर्ज़ो से बस बाहर कर दो
मैं खटता दिन रैन अविरत
भरता हूँ मैं पेट अनगिनत
मेहनत से है रोजी रोटी
मुझको बस इतना भर कर दो
मेरा भी घर आंगन भर दो
नहीं खालसा न मुस्लिम हूँ
ना हिन्दू मैं ना ज़ालिम हूँ
देशभक्त हूँ इक किसान मैं
मुझको बस इतना भर कर दो
पैरों तक इक चादर कर दो
राजनीति मैं नहीं जानता
कूटनीति मैं नहीं मानता
ना लाठी ना झंडा मेरा
मुझको बस इतना भर कर दो
मेरी दर पर राशन कर दो… प्रीति राघव चौहान