दीप
अन्तरतम का अंधियारा जो दूर भगा दे मन के भीतर ऐसा तुम एक दीप जलाओ

अन्तरतम का अंधियारा जो दूर भगा दे,

मन के भीतर ऐसा तुम एक दीप जलाओ।

बुझी-बुझी सी राहों को

 जो रोशन कर दे,

अंधकार को मिटा

 ज्ञान का सूर्य उगाओ

अन्तरतम का अंधियारा जो दूर भगा दे,

मन के भीतर ऐसा तुम एक दीप जलाओ।

 हर पीड़ा धो दे समूल

इसका उजियारा 

स्वर्णिम प्रकाश से संवर जाए

 ये जीवन सारा

जहाँ हताशा दिखे

 आस का दीप जलाओ,

अन्तरतम का अंधियारा जो दूर भगा दे,

मन के भीतर ऐसा तुम एक दीप जलाओ।

 हर भय, हर संशय को 

 कर सके शांत जो

पावन प्रकाश से मिटा

 सके तमस भ्रांति जो

दुख की रजनी में बन

 किरण भोर सम छाओ

अन्तरतम का अंधियारा जो दूर भगा दे,

मन के भीतर ऐसा तुम एक दीप जलाओ।©’प्रीति राघव चौहान’

VIAप्रीति राघव चौहान
SOURCEPRITI RAGHAV CHAUHAN
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नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

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