इस बार जला कर मन का दीप
दीपावली
इस बार जला कर मन का दीप , हरना तमस स्वयं का, समस्त ब्रह्मांड में भारत की अनंत, शाश्वत ज्योति हो। इस बार मनदीप जला, हरना तमस स्वयं का। ना केवल दीवारों पर टिमटिमाती रोशनी, ना केवल दीपों से सजे द्वार, इस बार भीतर का अंधेरा मुरझाएगा, हर कोना, हर किनारा, एक नए उजास से भर जाएगा। चमकते हुए बाहरी प्रकाश से परे, अंतर की गहराईयों में कहीं, छिपा है एक दीप जो जलने को तत्पर है। इस बार वही दीपक जलेगा, अहंकार, मोह, द्वेष के तम को चीरता हुआ। इस बार मनदीप जला, हरना तमस स्वयं का। स्वयं के भीतर का हर कोना, हर परछाईं, हर पीड़ा, धुएँ से घिरी वह क्षीण रेखा भी चमकने लगेगी इस आलोक में। आओ, हम अपने भीतर वह दीप जलाएँ, जो न केवल हमारे, बल्कि समस्त ब्रह्मांड को रोशन कर सके, जो अंधेरों में बंधे विचारों को तोड़ सके, जिसकी लौ में समर्पण की ऊष्मा हो और कर्म की चमक। आज, भारत की भूमि से उठी ये रश्मिरथि केवल घरों के आँगन तक सीमित नहीं, यह फैल जाएगी नभ के पार, वहाँ तक जहाँ तारे भी टिमटिमा कर इस ज्योति के आगे नतमस्तक होंगे। दीपों में होगी वह प्राचीनता जो वेदों के स्वरों में गूंजती है, और वह नवीनता जो नव-सृजन में अंकुरित होती है। ब्रह्मांड के विस्तार में, भारत के ये ज्योतिर्पुंज जगमगाएगे आनंद बनकर, कि जब तक यह प्रकाश है, तब तक आशा है, विश्वास है तब तक यह प्रेम है। कृत्रिम दीपों के बीच, सच्चे प्रकाश का अन्वेषण होगा, बाहरी शोर के पार, शांति का संगीत गूंजेगा। यह दीपावली, सिर्फ एक पर्व नहीं, एक यात्रा होगी स्वयं तक की, तम को आलोक में ढालने की, एक नई सुबह, अंधेरे को उजाले से भरने की। इस बार मनदीप जला, हरना तमस स्वयं का,