चल मेरे तुम्बे तुम्बक तू
बहुत दिन पहले की बात है। एक पहाड़ की तलहटी में एक छोटा सा गांव था रेवासन। उसी गांव में रहती थी प्यारी सी नटखट सी मुनमुन। मुनमुन आठ वर्ष की थी और पास ही के विद्यालय में तीसरी कक्षा में पढ़ती थी। घर हो या बाहर सभी जगह मुनमुन को सराहा जाता था। गुलाबी गालों वाली गोल मटोल मुनमुन थी ऐसी कि जो देखे वह देखता ही रह जाए.. और उसके कारनामे तो बस पूछो ही मत!! बड़े-बड़े बड़े भी घबरा जाएं।एक किस्सा कुछ यूं है कि पाठशाला में ग्रीष्मकालीन अवकाश पड़ गए और मुनमुन ने जिद ठानी की नानी के घर जाएगी। नानी का घर बस एक जंगल पार ही था। वहां तक आने जाने का कोई साधन ना था। मुनमुन की मां को घर में ढेरों काम थे इसलिए उन्होंने एक छोटी सी डलिया में कुछ पुए और लड्डू मुनमुन को दिए और शाम ढलने से पहले लौट आने की हिदायत भी दी। मुनमुन ने नया सितारों से सजा लाल रंग का फ्रॉक पहन रखा था। उसके गले और बाजू पर सुनहरी रंग की फ्रिल लगी थी। फ्रॉक टखने को को छू रहा था और बहुत ही घेरदार था। मुनमुन किसी परी से कम नहीं लग रही थी। मुनमुन ने डलिया उठाई और मां को प्रणाम किया।
जल्दी ही वह उस जंगल में जा पहुंची जिसके पार उसकी नानी रहती थी। मुनमुन उछलती कूदती जा रही थी कि अचानक उसके सामने एक बंदर आ कूदा और खिर्र्खिर्राते हुए बोला-” लाल टमाटर मैं तुझे खाऊँगा!”
मुनमुन ने झट से मुस्कुराते हुए कहा – “राम राम मामा जी! खा लेना- खा लेना। पहले मैं अपनी बूढ़ी नानी को यह डलिया तो दे आऊँ। वह बेचारी.. दुखियारी बूढ़ी नानी मेरा रास्ता देखती होंगी।”बंदर ने कहा – “ठीक है… वापसी में ही सही।”.
अब मुनमुन नाचते गाते चल दी..ना
नी के घर जाऊंगी
पुए पकौड़े खाऊंगी
नानी देंगी दही बड़े
बंदर मामा अड़े खड़े
कुछ दूर जाने पर मिली चतुर लोमड़ी। उसने सुना था लोमड़ी चालाक होती हैं। जैसे ही वह उसे खाने को झपटी; मुनमुन दोनों हाथ जोड़कर बोली – “नानी मेरी बूढ़ी है… देती हलवा पूरी है। नानी के घर जाऊंगी, मोटी होकर आऊंगी।तब तुम मुझे खाओगी तो तुम्हें मांस ज्यादा मिलेगा।” लोमड़ी उसकी बातों में आ गई। उसने भी कहा, “ठीक है जल्दी आना।”
अभी वह थोड़ा-सा दूर पहुंची थी कि एक भयंकर बला तेंदुए के रूप में उसके सामने आ टपकी…” अरे महाराज आप?सादर अभिनंदन! दंडवत प्रणाम! बड़ी मुश्किल से बचते बचाते यहां तक पहुंची हूूँ। यह भी अच्छा हुआ आप मिले.. वरना तो वह बंदर मामा और लोमड़ी मौसी मुुझे चट करने ही वाले थे।
“तेंदुआ गरजा -” §§§ऐसे कैसे???? सबसे पहला हक मेरा है।”
मुनमुन ने फिर वही कहानी सुनाई….. मेरी बेचारी बूढ़ी नानी…. और तेंदुए ने उसे जाने दिया। उसने भी वापसी पर उसे खाने की मोहलत दी।
जल्दी ही वह जंगल के पार अपनी नानी के घर जा पहुंची। नानी ने मुनमुन से बहुत लाड़दुलार किया। उसे बहुत सी चीजें बनाकर खिलाईं… हलवा – पूरी, खीर, कचौरी, दही – बड़े… आदि ।मुनमुन ने नानी को उन जानवरों के बारे में बताया, जो उसे रास्ते में मिले थे। नानी ने जब सुना कि मुनमुन के साथ ऐसा हुआ तो उन्होंने उसे एक बड़े से तांबे के मटके में बिठा दिया और मटके के मुख पर कसकर ढक्कन लगा दिया। मुनमुन ने नानी से आशीर्वाद लिया उस बड़े से तुंबे में बैठकर गाती हुई चल दी।
वह गाती जा रही थी…..
चल मेरे तुंबे तुम्बक तू
चल मेरे तुम्बे तुम्बक तू…. रास्ते में तेंदुआ बैठा था। तेंदुआ बड़े से तुम्बे को अपनी ओर आते देख और उसकी गड़गड़ाहट सुन डर कर दुम दबा कर भागा। फिर वह गाते हुए आगे बढ़ती गई…..
चल मेरे तुम भी तुम्बे तुम्बक तू
कौन देश से आया तू
झटपट चटपट सरपट चल
गड़गड़ भड़भड़ फड़फड़ चल
उस तुम्बे की आवाज सुनकर सारे जानवर भागने लग गए। वह तुंबा लुढ़कते लुढ़कते आगे बढ़ता गया। उससे डर कर सभी जानवर भाग गए और मुनमुन सही सलामत अपने घर वापस पहुंच गई। कहते हैं आज भी मुनमुन उस तुंबे में बैठकर अपनी नानी से मिलने जंगल पार आती जाती दिखाई देती है और उस तुम्बे की आवाज उसके गांव तक सुनाई देती है। उस गांव के बच्चे आज भी गाते हैं……
चल मेरे तुम्बे तुम्बक तू
कौन देश से आया तू
झटपट चटपट सरपट चल
गड़गड़ भड़भड़ फड़फड़ चल
चल मेरे तुम्बे तुम्बक तू
चल मेरे तुम्बे तुम्बक तू
.. प्रीति राघव चौहान ©