शिमला जाने के लिए जब जगह जगह रहने के स्थान ढूंढे तो एक जगह नजर अटकी.. कंडाघाट पर। कारण यदि जानेगें तो हो सकता है आपको बचकाना लगे। लेकिन यह सच है कि ज्येष्ठ की भरी गर्मी में सबसे सस्ता राहत योग्य स्थान यही लगा। आर्चिड होम स्टे! एक सप्ताह का अवकाश था।
सचमुच मेरा यह फैसला एकदम सही था। अपने पाँच दिवसीय स्टे में अपने हाथ से बनी चाय और यहाँ की आनर वृद्धा आंटी जी के हाथ से बने भोजन ने घर से बाहर होने का भेद मिटा दिया। दरअसल कंडाघाट में कोर्ट द्वार एक ग्रामीण क्षेत्र है। शिमला मार्ग का विकास और विस्तार होने के कारण यहाँ के बहुत से ग्रामीण क्षेत्रों को लाभ पहुंचा है। ग्राम वासी अभी यह समझ ही नहीं पा रहे कि उनके पास कुदरत का कौन सा अनमोल खजाना है ।पहाड़ी जीवन और उनके कार्यों को पास से देखना ही जीवन में नवीन ऊर्जा का संचार करता है। सोचा क्या फर्क पड़ता है? तीस किलोमीटर इधर या उधर।
शहरी मायाजाल तो दिन रैन अपने मैट्रो सिटी में देखते ही हैं। अब ज़िन्दगी से जुड़ा जाए।
कंडाघाट राष्ट्रीय राजमार्ग 22 पर स्थित है। हिमाचल की राजधानी शिमला यहाँ से 30 कि.मी. की दूरी पर है। ऐतिहासिक पटियाला राजघराने की शीतकालीन राजधानी तथा वर्तमान में एक प्रसिद्ध पर्यटन केंद्र चैल जाने के लिए सड़क यहीं से मुड़ती है। चैल यहाँ से 29 कि.मी. की दूरी पर है। आप यदि भारत में नैसर्गिक सौंदर्य और यहाँ की ग्रामीण व्यवस्था से परिचित होना चाहते हैं तो बजाय बड़े शहरों के यहाँ के ग्राम व देहाती क्षेत्रों का भ्रमण करे। असली भारत यहीं बसता है।
चलो चलें कंडाघाट। यहाँ आकर आप स्वयं को आनंद के एक अलग मुकाम पर पाएंगे। पहाड़ सदैव शांति का पर्याय होते हैं। यहाँ आप अपने दिल से निकलने वाली आवाज को सुन सकते हो। सुबह सवेरे पक्षियों का अद्भुत कलरव, शाम तक घाटी में फैलते अलग अलग रंग और यहाँ के सदैव कर्मरत ग्रामीण। यदि मैं कहूँ कि पहाड़ का अर्थ है सतत गति.. तो गलत न होगा। कंडाघाट में कुछ रोज ठहरने के उपरांत पाया कि बड़े बड़े हिमाचली स्थल ही क्यों? पूरा हिमालय अपने आप में अनूठा है। इसकी हर इकाई से रूबरू होगें तभी तो जानेंगे क्या है यह?
यहाँ का आरोही वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय सचमुच दर्शनीय है। यहां के निवासियों ने विद्यालय में खेल के मैदान के लिए लंबे संघर्ष के बाद इसे पाया है। यहां के स्थानीय निवासी रोहित ठाकुर का कहना है यदि इस गांव में खेल न होते तो यहाँ मद्यपान और नशे का साम्राज्य होता। इस गाँव के सभी विद्यार्थी व युवा खेलों के लिए अपना समर्पण भाव रखते हैं यही वजह है कि यह गाँव नशे से अछूता है।यदि हिमाचल के गाँवों को देखने का सौभाग्य मिले तो आपको यहाँ पर मंदिरों के प्रति विशेष जुड़ाव देखने को मिलेगा। अधिकांश ग्रामीण हिमाचली आपको अपने ललाट पर तिलक संग मोहक मुस्कान लिए मिलेंगे।
पहाड़ों में मैदानी क्षेत्रों से आने वालों के लिए जो एक बाधा है वह यहाँ की संकरी व खड़ी ढाल वाली सड़कों पर अपनी गाड़ी चलाना है! तो बेहतर यही है कि ज्यादा एडवेंचर के चक्कर मे न पड़ें और यहाँ की लोकल टैक्सी कर लें। यदि पैदल चलना चाहें तो आपकी मर्जी।
काली टिब्बा एक ऐसी ही जगह है। जहाँ जाने के लिए आपको एक सधे हाथ वाले ड्राइवर की जरूरत पड़ेगी। हिमाचल प्रदेश के चायल हिल स्टेशन में काली टिब्बा मंदिर स्थित है। इस मंदिर में 5 शिवलिंग स्थापित हैं। यहां का मुख्य मंदिर मां काली का है। जिसे वर्ष 2002 में बनाया गया था। इससे पहले यहां पर मां काली की पिण्डी के रूप में स्थापना हुई थी। यहां पर पंचमुखी हनुमान मन्दिर, गणेश व शिव मन्दिर के भी कई मंदिर हैं। मंदिर में कई प्रकार के खूबसूरत पत्थर देखने को मिलते हैं। यह मंदिर चारों ओर से संगमर्मर के पत्थरों से बना हुआ है। अभी बाकी है.. लेकिन जो सबसे खूबसूरत बात है इस जगह में वो है यहाँ का नैसर्गिक सौंदर्य। आप इसे नेपाल के पोखरा के समकक्ष रख सकते हैं। यहाँ आकर आप कभी वापस नहीं जाना चाहेंगे। लेकिन यहाँ दूर दराज तक कोई रहने की व्यवस्था नहीं। आप इस खूबसूरती को अपनी यादों के पिटारे में ले जा सकते हैं।
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