काशी के बुनकर

बनारसी साड़ी के बुनकर

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काशी के बुनकर

हंथकरघा जहाँ गाता धुनों का राग,

हर ताना-बाना कहता है दिल की बात।

 

सूरज सी रेशम किरणों से बुनकर के वो खेल,

 मेहनत और कारीगरी का अविरत अनुपम मेल।

हथकरघा चला रहे जैसे सरगम का तार,

उनकी खड्डी पर बना बनारस का श्रृंगार।

 

रेशम साड़ी में छिपा बनारस का इतिहास,

सदियों से आज तक हर दुल्हन की आस। 

मंदिरों की छांव हो या हो गंगा का घाट,

हर बुनाई में झलके इनके बनारसी ठाठ।

 

कभी खुशी संग, कभी दर्द संग बुनते कितने रंग,

सुनो, उनकी चुप्पी में भी छिपी है नई उमंग।

फटी बांसुरी से भी निकले कहलाते वो गीत,

ऐसे ही बनारसी बुनकर, अजेय और अद्वितीय।

प्रीति राघव चौहान

 

VIAप्रीति राघव चौहान
SOURCEPRITI RAGHAV CHAUHAN
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नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

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