आधी आबादी..
हिजाब में, घूंघट में, साड़ी में,
दुपट्टे में लिपटी है, लिपटी रहे!
क्या फर्क पड़ता है?
मुट्ठी भर आवारा महिलाओं
की आसमानी उड़ान से
जो परकटी, गोनकेश,अनोखे वेश में डॉक्टर इंजीनियर, वैज्ञानिक, शिक्षिका हैं..
जिन्हें लगती है गर्मी – सर्दी
जिन्हें आता है पसीना
और जो रखती हैं दिमाग
जो हैं आत्मनिर्भर…
पहले भी रहीं हैं
लेकिन बढ़ी नहीं!
ये आवारगी भारत में कभी
बढ़ेगी भी नहीं
ईरानी महिलाओं जितना
आवारापन कहाँ?
भारतीय महिलाओं में!
माँ दुर्गा, गार्गी, इंपाला,
सावित्री बाई फुले, कल्पना चावला, इंदिरा गांधी, किरण बेदी, सुषमा स्वराज…
नाम बहुत हैं पर मुट्ठी भर…
ये आधी आबादी जी सकती है
दो टुकड़ों पर
क्योंकि लिहाफ, हिजाब, और पर्दे
के बीच जीते जी भूल चुकी हैं
ये कि इनके पास भी हैं
दो हाथ, दो पैर, एक दिमाग
पुरुषों जैसा
और सबसे बढ़कर
संतति का वर…
नई सृष्टि का आधार …
जागो!
डर से निकलो,
भय तमाम त्यागो।