लघुकथा

  लघुकथा नया सवेरा निधि उम्र के उस पड़ाव पर थीं , जहाँ पहुँच कर व्यक्ति दिशा शून्य हो जाता है। पैंसठ  की उम्र और तमाम बीमारियां...

ऐ हिंन्दोस्तान

     आंधियों से तुझको लड़ना सिखा दूं तो चलूँ ऐ सेहरा तुझको गुलशन बना दूं तो चलूँ मुझको तो जाना ही है ऐ हिंन्दोस्तान एक...

दो कांधे और चाहियें

कुछ वक्त और ठहर जा ऐ ज़िन्दगी दो कांधे और चाहिये बेटियाँ कुंवारी हैं अभी

देशभक्ति गीत

मैं वतन का हूं सिपाही यह वतन हमदम मेरा इसके सजदे करते करते बीते यह जीवन मेरा है मैं वतन कहूं सिपाही यह वतन हमदम...

आज के लाल

  निकलते ही पाँव छीन लेते हैं कुर्सी पिता की चिंतन की काठी में बांध छोड़ देते हैं निर्जन वेदना की चिता तक आज के लाल प्रीति राघव चौहान

कविताएँ

कविताएं अच्छी हैं परन्तु कविताएं कागज़ के सिवा कुछ भी नहीं यदि उनमें दिशाबोध न हो और विभीत्स कविताएं तो कविताओं पर भी दाग हैं जो किसी सर्फ एक्सेल, ब्लीच...

चाँद

उसे चांद से कम कुछ नहीं चाहिए उसे क्या मालूम चांद पर चट्टानों के सिवा कुछ भी नहीं उसे क्या मालूम चांद पर परिया नहीं है नहीं मिलेगी वहां...

विद्यालय

हाल देखिए विद्यालय का कैसे काम तमाम हुआ सारा सरकारी अमला क्यों कर है बदनाम हुआ नौ तक आ जाते हैं छ:के छ:बारी-बारी राशन बँटते ही कर...

विज्ञापन

 उपभोक्तावादी संस्कृति/सभ्यता हर चेहरा एक विज्ञापन एक दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ एक दूसरे को नीचा दिखाने की चाह हर एक उत्पाद आता नजर दूसरे की टांग खींचता प्रतिस्पर्धा...

दस्तक

दस्तक जीवन की मजारों पर अक्सर अनसुनी हो जाती हैं खुशनुमा दिनों की शमा हर रात पिघल जाती है मुरझा जाते हैं गुल सूखती स्मृति  से जीती जागती कुछ...