तोते टिटियाते नहीं
आलसी पग भी
दिन भर पड़ा रहता है
अपने छोटे टोकरे में
मछलियाँ तो पहले ही
बेजुबान नाचती हैं
इधर से उधर
घर में सभी प्राणी
जैसे बुद्ध के सानिध्य से उठ
चले आयें हों
खामोशियाँ खिलखिलाती नहीं
अब तारक मेहता का कोई
चश्मा लुभाता नहीं
स्प्राइट से सौ गुणा ज्यादा
कूल हो चुके हैं हम
कभी कभार घर का कोई
सदस्य फरमाईश के पत्थर
फेंकता है घर की शांत झील में
बुद्धू बक्से और छ:इंच की स्क्रीन के
आगे पैर पसारे सभी
रहते हैं नत मस्तक, मौन !
प्रीति राघव चौहान