
लक्ष्य नया अपनाना होगा
लकीर के फकीर को
कब मिली डगर नई
आंधी में अधीर को
कब मिली सहर नई
सबसे हटकर चलना है तो
लक्ष्य नया अपनाना होगा
दुनिया तेरे पीछे होगी
आगे नया जमाना होगा
जाड़े की सुबह उनको
लगती है अलसाई सी
और राधा की नीली उंगली
है जाड़े से घबराई सी
जो सोए हैं तले गगन के
उनको भी अपनाना होगा
अपने हिस्से की गर्म रजाई
बाँट पुण्य कमाना होगा
चींटियों से सीखें
आकाश को उठाना
तपी हुई धारिणी से
हम सीखें मुस्कुराना
मांगे से कब राह मिली
लहरों से टकराना होगा
लिख राम नाम पत्थर पर
सेतुबंध बनाना होगा
सात सुरों से अनहद
सप्त रंग से निराकार
पा लेते हैं वो गुणीजन
जो सम रहते हैं हर वार
शोक मोह के मायाजाल से
खुद को हमें बचाना होगा
भीतर के इस चंचल मन को
नया सबक सिखाना होगा
“प्रीति राघव चौहान”
5जनवरी2022
गुरुग्राम