तिनका
तितलियों से रंग ले
वो उड़ती पात पात पर
मुस्कुराती झूमती
समय की बिसात पर
मुट्ठियाँ कसी हुई
हौसले बुलंद थे
लाल लाल अधरों पर
रौशन हजारों छंद थे
तेजस्विनी के भाल पर
सुकुमार तेज था
रोम रोम गर्विता का
ज्ञान से लबरेज था
जो भी उसको देखता
बस देखता ही रह गया
उसकी लिखी तान पर
साथ उसके बह गया
एक रोज़ तिनका एक
उसकी आँख में पड़ा
ह्रदय में लगा था शूल
आँख से उबल पड़ा
शरारतें और शोखियाँ
जो आँखों का गुरूर थीं
लहू बन ढुलक रहीं
वो गुल तो बेकुसूर थीइबारतें लिखी गई
इश्तहार भी हुआ
वो शूल सा तिनका
मगर शर्मसार न हुआ
आज उस बागीचे में
हैं बेशुमार तितलियाँ
मगर न पीछे दौड़तीं
वो नन्हीं नन्हीं उंगलियाँ
जिन्दा है तेजस्विनी
जिन्दा दिली खो गई
ज्ञान गंगा थी जो कल
सरस्वती सी खो गई
‘प्रीति राघव चौहान`तिनका
तिनका
Saraswati