अमीना यदा कदा मुस्कुराती है

आज अमीना का दिन

शुरु हुआ प्रार्थना से

लेकर हाथ में

जादू का बक्सा

जिसे खोने का डर लिए

देख रही है वो सपने अविरल

बंद उन आँखों में सपने सुन्दर कल के

चंदा सूरज चिड़िया गुड़िया

घीया के फूल

फूलों पर घीया

पढ़ते पढ़ाते वो

कनखियों से देख लेती है

दीवार के झरोखे में

ऊपर उठती चुहिया

पढ़ती है अटक अटक

समझती है सब

परीक्षा में

जाने कैसे हो जाती है सफल

लिखने में डरती है

क्या कैसे लिखे

उर्दू अरबी से मौलवी की छड़ी से

जैसे तैसे निकलते ही

सामने आ जाती है हिन्दी अंग्रेजी

सरकारी स्कूलों के बच्चों को

जल्दी नहीं छोड़ते मौलवी साहब

अक्सर छुटकी सोफिया को

 लेकर चलती है साथ

चार दफा कक्षा से भागकर

पहली में झांक आती है

कहीं आमीन को कोई सता तो नहीं रहा

जब जब उसकी मां खेत पर जाती है

घर पर ही रह जाती है

जैद और जैनब अभी गोदी के हैं

मां के पीछे वो घर बुहारती है

बर्तन मांजती है

तीन दिन में एक बार

आने वाले पानी को

भर भर लाती है

फिर भी मां से गालियाँ खाती है

वो चाहकर भी विद्यालय

प्रतिदिन न आ पाती है

शहर में उसकी उम्र की आरू

बोलतीं हैं पटापट अंग्रेजी

ये बात और है वो भी हिन्दी में

गच्चा खा जाती है

आरू की आँखों में हैं सपने नासा के

उसकी कक्षा में सदैव दो अध्यापक रहते हैं

उसके एसी कक्ष में चुहिया कहाँ

विद्यालय में हैं विलायती पौधे

वहाँ फूलों पर घीया कहाँ

अमीना माँ की गालियाँ खाती है

आरू माँ को नाच नचाती है

माँ की ममता बिटिया के

हर नखरे पर नतमस्तक हो जाती है

आरू सदैव खिलखिलाती है

अमीना यदा कदा मुस्कुराती है

           “प्रीति राघव चौहान”

 

 

 

VIAPriti Raghav Chauhan
SOURCEप्रीति राघव चौहान
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नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

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