एक डायरी
सक्षम सक्षम सब करें
क्या सक्षम के शंखनाद से जगा पाये हम बालमन..
प्रीति राघव चौहान 20दिसम्बर 2018
विद्यालय में जाना मेरे लिए किसी उत्सव से कम नहीं है। छोटे- छोटे बच्चे और उनका पंछियों जैसा कलरव मन को सुकून से भर देता है। परंतु पिछले एक लम्बे अर्से से हमारा यह सुकून जाने कहां खो गया। शिक्षा के क्षेत्र में रोज नए प्रयोग होते रहते हैं परंतु शिक्षा का स्तर नहीं सुधरता, यह सचमुच चिंता का विषय है। एक शिक्षक क्या चाहता है?
एक कर्तव्य निष्ठ शिक्षक अपना सर्वस्व अपने विद्यार्थियों को देना चाहता है। आजकल एक नया प्रयोग जारी है वह है सक्षम हरियाणा…. सुनने में यह जितना सहज और सरल लगता है ज़मीन पर उतर कर देखें तो इतना सीधा है नहीं। पहले पहल जब सक्षम की लहर आई तब लगा बाकी योजनाओं की तरह यह भी जल्द चलता होगा परंतु अब लग रहा है अच्छा ढोल गले पड़ा है। जुलाई में जब सक्षम की लहर सरकारी विद्यालयों में आई थी तभी चिंता के अनजाने बादल घिर आये थे। कक्षा तीसरी में सक्षम का प्रयोग अनुचित लगा।
सरकारी विद्यालयों में अधिकांश बच्चे पिछड़े तबके से आते हैं इन्हें स्कूल तक लाना किसी महाभारत से कम नहीं….. खासकर उस क्षेत्र में जहां मैं काम करती हूं। वह एक पिछड़ा और मुस्लिम बहुल इलाका है। यहां हर घर में आठ से दस बच्चे मिल जाएंगे! इनके लिए विद्यालय और शिक्षा प्राथमिक नहीं द्वितीयक कार्य है। मुंह अंधेरे यह बच्चे उठकर मस्जिद को चले जाते हैं वहां से सीधा विद्यालय आते हैं और विद्यालय से फिर उसी मस्जिद को जाते हैं। इनके लिए दीनी शिक्षा का महत्व विद्यालय से कहीं ज्यादा है। विद्यालय में इन बच्चों की उपस्थिति को बनाए रखना हम लोगों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं।
सच तो यह है कि इनके विद्यालय आने का कारण मुफ़्त स्कूली शिक्षा और वर्दी व भोजन आदि है। अधिकांश माता पिता अशिक्षित हैं। उन्हें शिक्षा के विषय में समझाना मोदी जी के नाम पर वोट मांगने जैसा है। आधी कक्षा लम्बी अनुपस्थिति की शिकार है… कारण घरेलू कार्य.. यथा माँ की बीमारी, छोटे भाई – बहन संभालना, लकड़ी लाना, खेत पर रोटी देने जाना। माता-पिता के आगे बच्चे खेलते रहते हैं उन्हें स्कूल याद नहीं आता। शिक्षक के फोन से भी उनकी नींद नहीं टूटती। वे जानते हैं सप्ताह भर न जाने पर ही नाम कटेगा।
ऐसे में सक्षम…?आज पहली दफा मैंने उन नन्हीं हथेलियों पर अपनी अक्षमता को बरसाया… क्या ये चुनौती हम जीत पायेंगे…?