भांति – भांति के देख गजानन
बचपन पर अभिमान हुआ
रंग बिरंगी थाली लड्डू
संग मूषक आह्वान हुआ
कृष्ण सिरहाना लिये गाजरी
लेटे थे बेफिक्री से
सिंहवाहिनी दुर्गा को
देख ईश का भान हुआ
शिवलिंग भी था इक कोने में
साथ बनी तलवार और ढाल
उजले माथे प्यारे चेहरे
नवयुग के नवरंगो साथ
इनकी सौंधी माटी में है
लोक कला की अनजानी सी
मिट्टी से रच डाली कैसे
इक गुड़िया जापानी सी
केश काढ़ कर बाल बनाए
जूड़ा तिस पर जूड़ा फूल
नील रंगी परिधान में
लगती बिल्कुल मास्टरानी सी
रच दी उसके होंठो पर बच्चे ने टन भर मुस्कान
बिना छड़ी के गजब अदा संग
देख रहा इक हिन्दुस्तान
भांति – भांति के रखे मुखौटे
मोर, शेर, उल्लू वाले
जिस पर चमक सजा रंगीली
जल उठे भवन आले
इक मुखौटा तितली सा प्यारा
सतरंगी पंखों में चमकता था न्यारा।
फूलों से सजा एक झूला हिंडोले वाला
साथ ही लुहार गाड़ा एक खप्पचियों वाला
एक मोर जो लुभा गया मटियाला सा
साथ ही म्यूरल में दूसरा संभाला सा
नाच रहे थे मधुबनी में
काले धवल बाल बाला
नन्हें नन्हें हाथ से धुल गए
इनके रंग रोगन झाला
हर लकीर, हर रंग, एक कहानी कहता है,
इन बच्चों का हुनर, भला न किसके दिल को छूता है।
कौन कहता है छोटे गाँव में सपने बड़े न फलते है?
ये समय गवाही देता है, यहाँ बुलंद हौंसले पलते हैं।
आओ, अभिनंदन करेंं इस कोशिश को,
जहाँ कला बन रही है पहचान।
यह नन्हें कलाकार कल लिखेंगे,
अपने देश की नई उड़ान।