मैं अपने वेतन से खुश हूँ 

यदि कह भी दूँ

तो भी…

ढाई हजार वाई-फाई 

टीवी फोन के 

दो हजार फोन के खून चूसते ऐप के 

तीन हजार गाड़ी का किराया 

आठ हजार बच्चों को जेब खर्च

आठ दस विद्यालय के अल्लम गल्लम

कार्यों में लगाया 

(आखिर धर्मखाता भी कोई चीज़ होती है) 

कहीं जन्मदिन कभी शादी 

हर महीने तैयार रहती है 

कोई न कोई बर्बादी 

हर माह कोई न कोई विशेष उत्सव 

लगा ही रहता है 

कोई मांग लेता है तो कोई उधार लेता है 

गोलगप्पे जी भर के खा लेते हैं 

दो चार हजार पतिदेव से भी मांग लेते हैं 

मैं यदि कह भी दूँ कि खुशहाल हूँ मैं 

तो भी मेरे दोस्त मेरी तंग हाली

 बयान कर देंगे

मैं चाहूँ भी तो उनके बुरे वक्त में 

कभी काम नहीं आई! 

क्या करूँ पैरों के चक्कर ने

रूकने न दिया 

और पहिए बिना धन नहीं चलते 

मैं चाहती हूँ विद्यालय के बच्चों को दिखा दूँ

इस खूबसूरत दुनिया का हर कोना

परन्तु उसके लिए जरूरी है 

बहुत से धन का होना

यही वजह है कि मैं खूबसूरत दुनिया को

डिजिटल मोड में गढ़ती हूँ 

उनके संग ज़िन्दगी को नित

 नए मोड में पढ़ती हूँ। 

हाँ यह सच है मेरी बहुतेरी कमाई 

धर्म खाते में जाती है जबकि 

इसी छोटी सी तनख्वाह में 

मेरे सहयोगी न सिर्फ अपना घर चलाते हैं 

वरन् जीवन मरण के सभी उत्सव मनाते हैं! 

 

(एक अतिथि शिक्षक की खुशनुमा जिन्दगी की एक झलक..) 

 


VIAPRITI RAGHAV CHAUHAN
SOURCEPritiRaghavChauhan
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नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

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