काशी, तू है समय का शाश्वत स्वर,
तू ही आरंभ और तू ही अंतिम पहर।
यहाँ जन्म की पहली पुकार सी
गंगा की धार में शाश्वत सृष्टि झलकती।
सतत प्रवाह में जीवन का संगीत,
काशी, जहाँ सृष्टि और शून्य कालातीत ।
धूप से नहाए ये घाट नए पुराने,
जहाँ हर श्वास में छिपे हैं फ़साने।
माँ गंगा की गोद में बहती कथा,
जीवन का आरंभ और अनंत की व्यथा।
काशी, जहाँ समय ठहरता नहीं
बहता है इसकी रगों में
शिव के डमरू की गूंज
से बंधा है यह नगर,
हर कण में गुंजायमान है
मोक्ष का अमर स्वर
मणिकर्णिका की अग्नि की साक्षी बनी,
जहाँ शरीर मिटते देखे और आत्मा की चमक बढ़ी
जीवन का अंतिम पड़ाव यहीं पर,
मोक्ष की राहें खुलती देखी।
यहाँ कोई अंत नहीं, बस आरंभ है,
काशी तेरा कण- कण शंकर
शाश्वत धर्म है।
जीवन और मृत्यु का दिखता अद्भुत मेल,
काशी, तुझमें सिमटता सृष्टि का खेल।
तो चलो, इस पवित्र भूमि को
ह्रदय से नमन करें,
गंगा की पावन धारा का
सहर्ष आचमन करें