ए जननी तेरा अभिनंदन
ए जननी तेरा अभिनंदन
है वंदन तेरी शिक्षा को
किया तिलक भेजा सुपुत्र
भारत भू की रक्षा को
वो तेरी आँख का तारा था
माना वो जान से प्यारा था
है कोटि कोटि यह अभिनंदन
तेरी ममतामयी भिक्षा को
आज हिमालय से वापस
जो भाल तेरे घर आया है
है देश मेरा नतमस्तक ये
तूने जो दी उस दीक्षा को
आकाश में जितने तारें हैं
वो सभी किसी के प्यारे हैं
है तेरा पूत तो ध्रुव जननी
वंदन है तेरी शिक्षा को
ए मात पुत्र वो तेरा था
पर छलनी मेरा कलेजा है
अब जैश कोई जिंदा न रहे
है वक्त नहीं समीक्षा को
हर आतंकी के परखच्चे
हम चौराहों पर टांगेंगे
ये रक्तबीज तो हम दुर्गा
अब वक्त नहीं परीक्षा को
“ प्रीति राघव चौहान”