निकलते ही पाँव
छीन लेते हैं कुर्सी पिता की
चिंतन की काठी में बांध
छोड़ देते हैं
निर्जन वेदना की चिता तक
आज के लाल
प्रीति राघव चौहान
निकलते ही पाँव
छीन लेते हैं कुर्सी पिता की
चिंतन की काठी में बांध
छोड़ देते हैं
निर्जन वेदना की चिता तक
आज के लाल
प्रीति राघव चौहान