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कैसे बताऊँ मैं ही तो सरकार हूँ..
क्य बताऊँ किसलिए बेजार हूँ
क्या बताऊँ किसलिए बेजार हूँ
रोज के हालात से लाचार हूँ
तरबतर हैं चप्पलें बरखा बगैर
दुर्गंध से भरा हुआ बाजार हूँ
मकानों में...
कसक #नईकविता #प्रीतिराघवचौहान
कुछ, न पाने की कसक
सब कुछ होने से ज्यादा है।
चाँद समूचा खिड़की में
पर अंधकार से वादा है
मंज़िल पर आ बैठे हैं
प्यास मगर है राह...
TheTeacher
यदि समाज में जड़ता है,
ये जड़ता कौन मिटाएगा?
किसकी ज़िम्मेदारी है ये,
राहें कौन दिखाएगा?
हर चॉक की रेख से पूछो,
किसने दुनिया बदली है?
हर पुस्तक के पृष्ठ...