सफर में हूँ निरन्तर मैं सड़क पर ज़िन्दगानी की

तुम्हें लगता है ठहरा हूँ मैं कब से एक ही ठीये

बहुत सी खामियां लेकर उठा भी हूँ गिरा भी हूँ  

मुसलसल जा रहा फिर भी हंसी जीस्त ए जहर पीए

मैं कल भी धूल से था रूबरू नन्हें से बच्चों संग  

नए हर्फ़ों से जाते थे वो जमीं का पैरहन सी ए

मैं अब भी धूल में पैबस्त हूँ उस नमी की मानिंद 

जो अक्सर पाई जाती है सुबह में भूमि के नीए

 

शिकवे गिले जबसे सजाये ताक पर हमने 

सभी इक फासला रखकर जताते कैसे क्या कीए

तुम्हें दिखती है काया और माया मोहिनी सी ये

मैं थोड़ा और उठ भीतर जलाता हूँ नए दीए

 

 

 

VIAPRITI RAGHAV CHAUHAN
SOURCEPritiRaghavChauhan
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नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

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