एक जंगल था। सावन – भादों में तो बहुत ही घना और हरा-भरा हो जाता था। उस जंगल में बहुत सारे मलबरी यानी शहतूत के पेड़ थे। और शायद इसीलिए वहां बहुत सी तितलियाँ रहा करती थी। दिन में तितलियाँ तो रात को जुगनू…. जंगल क्या बस देखते ही लगता था जैसे हम किसी सपनों की दुनिया में आ गए।ये बरसात के दिनों की बात है…

इस जंगल में रहती थी एक छिपकली – नाम था उसका लाली। आंखें ऐसी की कोई भी डर जाए। मानो अभी बाहर निकाल कर गिर पड़ेगी! कीट पतंगों को खाना उसका काम था। पेट तो उसका भरा रहता था पर नीयत न भरती थी। एक रोज़ शाम के समय मलबरी के पत्तों के नीचे श्वेतलाना और उसकी बहनें अना, सना और आहना छुपन छुपाई खेल रहीं थीं। श्वेतलाना की बारी थी सभी को ढूंढने की।

आज की रात उनके इल्ली जीवन की आखिरी रात थी। आज वो बीस दिन की हो गई थीं। वो आखिरी बार अपनी बहनों को जल्दी से ढूंढ लेना चाहती थी। उसने जल्दी से गिनती पूरी की- 9, 8, 7, 4, 5, 3, 2, 1… और अपने आठ जोड़ी पैरों से जल्दी-जल्दी सरकती हुई एक पत्ते से दूसरे पत्ते की ओर मुड़ी की तभी…. उसके सामने आ गई लाली! श्वेतलाना ने लाली को देख लिया था। उसे लगा यदि जल्दी ही उसने कुछ नहीं किया तो लाली उसे और उसकी बहनों को निगल जाएगी। श्वेतलाना ने आव देखा ना ताव, लगा दी छलांग दूर एक टहनी पर।

लाली ने उसे देख लिया था वह भी उसे देखते हुए उसी टहनी की और बढ़ी। यह देखकर श्वेतलाना ने हिम्मत नहीं खोई और एक लंबी कूद के लिए तैयार हो गई। उसे अपनी नहीं अपनी बहनों की चिंता थी। इस बार वो धड़ाम से जमीन पर जा पड़ी जहां मलबरी का एक सूखा पत्ता पड़ा था। श्वेतलाना ने देखा उसके सभी पैर सलामत थे परंतु चोट बहुत लगी थी। वह धीरे से सरक कर पत्ते के नीचे खिसक गई और दम साधे इंतजार करने लग गई लाली का। इधर लाली भी झपटी उसके पीछे परंतु वह चकमा खा चुकी थी। जैसे ही लाली नीचे गिरी तभी जोर की बिजली कड़की गड़गड़गड़गड़गड़। और तभी ऊपर से बड़ी सी टहनी टूट कर लाली पर आ पड़ी। लाली उस टहनी के नीचे दबी पड़ी थी।

इधर श्वेतलाना दम साधे लाली का हश्र देख रही थी। लाली उसे खाना चाहती थी। किंतु अब वो स्वयं लाचार थी। यह देखकर श्वेतलाना की आंखों से आंसू आ गए। श्वेतलाना जानती थी कि अब किसी भी पल उसका और उसकी बहनों का इल्ली जीवन समाप्त होने वाला है। वह बनने वाली हैं प्यूपा और फिर उन्हें कोई नहीं ढूंढ पाएगा।

श्वेत लाना से लाली की हालत देखी ना गई। उसने अपने सभी बहनों को आवाज दी… अना, सना, आहना …..जल्दी आओ !जल्दी आओ! श्वेतलाना की पुकार सुनकर सभी बाहर निकल आईं। उन्होंने देखा आवाज तो नीचे से आ रही थी। वो सभी नीचे की तरफ दौड़ीं। उनके पीछे-पीछे और भी बहुत सी इल्लियाँ हो लीं। सभी जानना चाहती थीं कि आखिर हुआ क्या है?

जब सभी इल्लियाँ नीचे पहुंची तो श्वेतलाना ने

कहा -“ देखो! सामने लाली को देखो। यह घायल है। यदि हम इस छड़ी को हटा देते हैं तो शायद यह बच जाए।”

सना ने कहा- “श्वेतलाना तुम पागल हो गई हो क्या? यदि हमने इसे बचाया तो यह हमें खा जाएगी।”

अना और आहना ने भी कहा -“ हाँ यह सच है… यह हमें नहीं छोड़ेगी।”

तब श्वेत लाना ने समझाया कि अभी यह घायल है और इसे सही होने में थोड़ा वक्त लगेगा।किंतु हमारे पास तो वक्त नहीं है ना? हमने इसे अभी ना बचाया तो यह मर सकती है। जल्दी से इस लकड़ी को हटाते हैं और वापस ऊपर जाते हैं। जब तक लाली ऊपर आएगी तब तक हम भी प्यूपा में बदल जाएँगे और यह हमें ढूंढ नहीं पाएगी।

बात उन सभी की समझ में आ गई सभी ने मिलकर जोर लगाया और लाली पर गिरी हुई टहनी को एक तरफ हटा दिया। इस पूरे चक्कर में लाली की पूंछ टूट गई थी। उसके शरीर से रक्त बह रहा था.. सफेद रक्त! लाली के ऊपर से छड़ को हटाकर सभी इल्लियाँ पुनः ऊपर चली गई। थोड़ी ही देर में वो प्यूपा में बदल गईं।

उस रात बहुत तेज वर्षा हुई। लाली ने सभी कुछ देखा था। वह पश्चाताप भरे आंसुओं से पूरी रात रोती रही। उसी घायल अवस्था में पड़े- पड़े उसे पूरे छःदिन बीत चुके थे। और उसकी फटी हुई नज़रे ऊपर की ओर देख रहीं थी। तभी उसने देखा की चार तितलियाँ ऊपर से उतर कर आईं और उसके आसपास मंडरा रही हैं। लाली यह जान चुकी थी कि यह तो वही इल्लियाँ है जिन्हे मैं खाना चाहती थी।लाली भूखी थी किन्तु इस बार लाली ने उन पर हमला नहीं किया।

लाली ने उनसे कहा-“ मुझे क्षमा कर दो दोस्तों। आगे से मैं कभी किसी इल्ली को नहीं खाऊँगी। ”

शिक्षा-भला करोगे तो भला होगा।

प्रीति राघव चौहान

VIAPritiRaghavChauhan
SOURCEPriti Raghav Chauhan
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नाम:प्रीति राघव चौहान शिक्षा :एम. ए. (हिन्दी) बी. एड. एक रचनाकार सदैव अपनी कृतियों के रूप में जीवित रहता है। वह सदैव नित नूतन की खोज में रहता है। तमाम अवरोधों और संघर्षों के बावजूद ये बंजारा पूर्णतः मोक्ष की चाह में निरन्तर प्रयास रत रहता है। ऐसी ही एक रचनाकार प्रीति राघव चौहान मध्यम वर्ग से जुड़ी अनूठी रचनाकार हैं।इन्होंने फर्श से अर्श तक विभिन्न रचनायें लिखीं है ।1989 से ये लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 2013 से इन्होंने ऑनलाइन लेखन में प्रवेश किया । अनंत यात्रा, ब्लॉग -अनंतयात्रा. कॉम, योर कोट इन व प्रीतिराघवचौहान. कॉम, व हिन्दीस्पीकिंग ट्री पर ये निरन्तर सक्रिय रहती हैं ।इनकी रचनायें चाहे वो कवितायें हों या कहानी लेख हों या विचार सभी के मन को आन्दोलित करने में समर्थ हैं ।किसी नदी की भांति इनकी सृजन क्षमता शनै:शनै: बढ़ती ही जा रही है ।

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